नवरात्रि का तीसरा दिन: देवी चंद्रघंटा की पूजा

वाराणसी(काशीवार्ता)।नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। इनमें तीसरे दिन की पूजा देवी चंद्रघंटा के नाम से प्रसिद्ध है। 5 अक्टूबर को यह दिन विशेष रूप से मनाया जाता है। देवी चंद्रघंटा का स्वरूप शक्ति, साहस और शांति का प्रतीक है। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, जिससे उन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। यह स्वरूप जीवन में संतुलन बनाए रखने का संदेश देता है, जिसमें शक्ति और शांति दोनों समाहित होते हैं।

देवी चंद्रघंटा मणिपुर चक्र में निवास करती हैं, जो नाभि के पास स्थित होता है और इसे आत्मशक्ति और साहस का केंद्र माना जाता है। मणिपुर चक्र हमारे जीवन में शक्ति और दृढ़ता का प्रतीक है। देवी चंद्रघंटा का इस चक्र में निवास यह दर्शाता है कि उनकी पूजा करने से व्यक्ति को साहस, आत्मविश्वास और आंतरिक शक्ति प्राप्त होती है। यह चक्र हमारे अंदर नकारात्मकता को दूर कर हमें कठिनाइयों का सामना करने का साहस देता है।

देवी का स्वरूप लाल और पीले रंग के चमकदार वस्त्रों में दिखाया जाता है, जो ऊर्जा और जोश का प्रतीक है। इसलिए उनकी पूजा के समय भक्तों को लाल, पीले या नारंगी रंग के वस्त्र धारण करना शुभ माना जाता है। पूजा की विधि के अनुसार, सुबह स्नान करने के बाद देवी की प्रतिमा या तस्वीर के सामने दीप जलाया जाता है और पूरे मन से पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाया जाता है, क्योंकि देवी को दूध से बनी वस्तुएं प्रिय हैं।

चंद्रघंटा देवी का वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। उनके हाथों में शस्त्र होते हैं, जो इस बात का संकेत है कि हमें अपने जीवन में आने वाली हर कठिनाई का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। उनका यह रूप हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ आएं, हमें कभी घबराना नहीं चाहिए, बल्कि साहस और दृढ़ निश्चय के साथ उन समस्याओं का सामना करना चाहिए। देवी चंद्रघंटा की पूजा करने से मनुष्य के भीतर आत्मविश्वास, शांति और मानसिक संतुलन आता है।

इस दिन का एक प्रमुख अनुष्ठान व्रत रखना है। पूरे दिन का व्रत रखकर देवी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। विशेषकर देवी चंद्रघंटा के मंत्र “ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः” का जप करना अत्यंत फलदायक माना जाता है। व्रत रखने वाले भक्तों को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक उपवास रखना चाहिए और शाम को पुनः देवी की पूजा के बाद व्रत खोलना चाहिए। पूजा के अंत में देवी को पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर प्रसाद वितरण किया जाता है।

नवरात्रि के इस दिन देवी चंद्रघंटा की पूजा से व्यक्ति के जीवन में आने वाली नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह पूजा हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी समस्याएं हमारे सामने आएं, हमें हमेशा धैर्य, साहस और दृढ़ता के साथ उनका सामना करना चाहिए। देवी चंद्रघंटा की पूजा से न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आत्मिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी होती है।

देवी चंद्रघंटा की कृपा से व्यक्ति जीवन में संतुलन, शांति और साहस प्राप्त करता है। उनके आशीर्वाद से व्यक्ति नकारात्मक परिस्थितियों में भी सकारात्मक रह सकता है और अपने जीवन को बेहतर दिशा में ले जा सकता है।

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