किस देवता की पूजा से कौन सा दोष होता है दूर, क्या हैं इसके उपाय?

हिन्दू धर्म में वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। वास्तु शास्त्र में अलग अलग दिशाओं में भी वास्तु दोष होने की बात कही गई है.वास्तु दोष होने पर कई तरह की समस्याएं व्यक्ति को परेशान करती हैं। इन्हें दूर करने के लिए दिशा के अनुसार अलग-अलग देवताओं के पूजन का विधान है। जिससे लोगों के दोष दूर होते हैं और जीवन में आने वाली परेशानियों के छुटकारा मिलता है। वास्तु शास्त्र को ज्योतिष की अहम शाखा माना गया है। ये भूमि, दिशाओं और ऊर्जा के सिद्धांत पर कार्य करता है और निर्माण से सम्बंधित चीजों के शुभ-अशुभ फलों के बारे में बताता है।

शास्तों के अनुसार माना जाता है कि यदि घर में वास्तु दोष हो तो चारों तरफ माहौल नकारात्मक हो जाता है। कई शुभ कामों में बेवजह विघ्न आते हैं। वास्तु शास्त्र में अलग अलग दिशाओं का वास्तु दोष समाप्त करने के लिए अलग अलग देवताओं की पूजा करने की बात कही गई है। आमतौर पर शास्त्रों में दस दिशाएं होने की बात लिखी है, लेकिन वास्तु दोष सिर्फ आठ दिशाओं का ही माना गया है।

पूर्व दिशा
हिन्दू धर्म में पूर्व दिशा के देवा भगवान सूर्य को माना गया हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर पिता पुत्रों के संबन्धों में खटास, नौकरी की समस्या, यश प्रतिष्ठा का कम होने जैसी समस्याएं आती हैं। पूर्व दिशा का वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित तौर पर सूर्य को जल देना चाहिए और आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। आप चाहें तो गायत्री मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।

पश्चिम दिशा
पश्चिम दिशा के स्वामी शनिदेव हैं.इस दिशा में वास्तुदोष होने पर शनि संबन्धी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.इस दिशा के दोष दूर करने के लिए आप ​शनिदेव की आराधना करें।हर शनिवार को शनि चालीसा का पाठ करें और हनुमान जी के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं।

उत्तर दिशा
उत्तर दिशा के देव बुध देव माने गए हैं। इस दिशा में दोष होने पर धन की समस्याएं सामने आती हैं। इन्हें दूर करने के लिए बुध यंत्र को घर में स्थापित करके पूजा करें और गणपति की आराधना करें।

दक्षिण दिशा
ये दिशा मंगल और यमराज की मानी जाती है। दक्षिण दिशा में दोष होने पर क्रोध बढ़ता है और आपसी टकराव की स्थिति पैदा होती है। दक्षिण दिशा का दोष दूर करने के लिए नियमित तौर पर हनुमान बाबा की पूजा करें।

ईशान कोण
उत्तर-पूर्व दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। इसके स्वामी ग्रह गुरु और शिव हैं. इस दिशा में वास्तु दोष होने पर वैवाहिक जीवन में समस्याएं आती हैं। ऐसे में शिव जी और माता गौरी की आराधना करनी चाहिए। उत्तर-पूर्व दिशा को साफ सुथरा रखना चाहिए।

आग्नेय कोण
दक्षिण-पूर्व दिशा को आग्नेय कोण कहा जाता है। शुक्र इसके देव हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर भौतिक सुखों में कमी, असफल प्रेम संबंध जैसी समस्याएं होती हैं। इसके दोष दूर करने के लिए माता लक्ष्मी की पूजा करें और शुक्र यंत्र को स्थापित करके नियमित तौर पर पूजा करें।

नैऋत्य कोण
दक्षिण-पश्चिम दिशा को नैऋत्य कोण कहा जाता है। इसके स्वामी राहु-केतु हैं। इस दोष के निवारण के लिए भगवान शिव को रोज जल अर्पित करें और राहु-केतु के निमित्त सात प्रकार के अनाज का दान करें।

वायव्य कोण
उत्तर-पश्चिम दिशा को वायव्य कोण कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी चंद्रदेव हैं। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर तनाव, जुकाम, मानसिक परेशानी और प्रजनन संबंधी समस्याएं होती है। इसे दूर करने के लिए चंद्र देव के मंत्र का जाप करें और महादेव की आराधना करें।

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