एफआइआर के बाद इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी का इंतजार

‘काशीवार्ता’ की मुहिम के बाद लुटेरे इंस्पेक्टर के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा

वाराणसी (राजेश राय)। पहड़िया के रुद्रा अपार्टमेंट में डरा धमका कर 41 लाख की लूट करने वाले सारनाथ के निलंबित पुलिस इंस्पेक्टर परमहंस गुप्ता और उसके सहयोगी दलाल धर्मेंद्र चौबे के खिलाफ लूट सहित कई संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज तो हो गया, मगर अब इनकी गिरफ्तारी और माल बरामदगी पर सबकी निगाहें टिकी हैं। हालांकि एक हफ्ते बाद एफआईआर दर्ज होने को लेकर भी सवाल उठ रहें हैं। पुलिस महकमे के इस ढीले ढाले रवैये पर ‘काशीवार्ता’ ने लगातार सवाल उठाये और लिखा कि अगर पब्लिक का कोई व्यक्ति मुकदमा दर्ज कराने सामने नहीं आता है तो पुलिस को खुद अपनी तरफ से एफआईआर दर्ज कराना चाहिए, क्यूंकि अपराध समाज के खिलाफ हुआ है। खैर हुआ भी वही। पुलिस को खुद एफआईआर करना पड़ा। ‘काशीवार्ता’ ने अपने पिछले अंक में जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज करने का जिक्र किया था, उन्हीं धाराओं में मुकदमा दर्ज करना पड़ा। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है लूटकी धारा 392 आईपीसी इसमें 14 साल की सजा का प्रविधान है। क्योंकि यह अपराध सूर्यास्त के बाद हुआ है। अन्य धाराओं में गैम्बलिंग एक्ट की धारा है जो जुआड़ियों के खिलाफ लगी है। सूत्रों की माने तो पुलिस के ऊपर इंस्पेक्टर को बचाने के साथ-साथ जुआड़ियों को बचाने का भी दबाव था। क्योंकि इस हाईप्रोफाइल कैसिनो में शहर के रईसजादों और बड़े व्यापारियों का आना-जाना था। एफआईआर में देरी की वजह भी यही थी। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसमें कुछ जनप्रतिनिधियों ने मुकदमा दर्ज न हो, इसका भरपूर दबाव बनाया। लेकिन, पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल ने सारे दबाव को दरकिनार करते हुए एफआईआर का आदेश दिया।

सबूत जुटाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती

सारनाथ एसओ ने अपनी तरफ से वादी बनकर एफआईआर दर्ज तो कर ली, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती सबूत जुटाने की होगी। जिसमें माल बरामदगी, सीसीटीवी फुटेज, लूट में प्रयुक्त उस वाहन की बरामदगी जिससे इंस्पेक्टर और दलाल अपार्टमेंट तक गया था। इसके अलावा इंस्पेक्टर और दलाल धर्मेंद्र चौबे की गिफ़्तारी और उनसे पूछताछ भी सबूत जुटाने में अहम भूमिका अदा करेंगे। अगर अभियुक्त गिरफ़्तारी से बचने की कोशिश करेंगे तो पुलिस को अदालत से कुर्की आदि कानूनी विकल्प अपनाने पड़ सकते हैं। उधर, वादी एसओ सारनाथ ने मुकदमा दर्ज करने में देरी की जो वजह एफआइआर में बतायी है वह थोड़ी बचकानी है। उन्होंने लिखा है, चूंकि अब तक कोई एफआईआर लिखाने नहीं आया अतः उन्हें मुकदमा दर्ज करना पड़ा। जबकि यह बात सभी जानते है, जुआड़ी कभी खुद को कानूनी पचड़े में नहीं डालते।

अग्नि परीक्षा में सीपी पास

किसी भी अधिकारी के लिये अपने अधीनस्थ के खिलाफ कार्रवाई सबसे बड़ी परीक्षा होती है। ईमानदार छवि वाले पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल की बनारस में नियुक्ति के दौरान महकमे में भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आये, जिनमें नदेसर चौकी इंचार्ज सूर्यप्रकाश पांडेय व इंस्पेक्टर परमहंस गुप्ता का मामला प्रमुख है। देनों ही मामलों में उन्होंने सख्त कार्रवाई की। जमानत मिलने के बावजूद सूर्यप्रकाश पांडेय पर गैंगेस्टर लगाकर जेल भेजा। वहीं परमहंस गुप्ता के खिलाफ लूट जैसी संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया। मगर, इस पूरे प्रकरण में परमहंस गुप्ता का तबादला सीबीसीआईडी में किया जाना हैरान करने वाला है। जानकारों का कहना है, अपनी पहुँच का इस्तेमाल कर गुप्ता ने यह सफलता अर्जित की है। पर इससे जाँच प्रभावित होने की संभावना है।

TOP

You cannot copy content of this page