वट सावित्री व्रत की पूजा बरगद के वृक्ष के नीचे की जाती है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति की लंबी उम्र और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करना है। यह व्रत सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस प्राप्त किया था, वट सावित्री व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय समाज और संस्कृति में महिलाओं की भूमिका को भी दर्शाता है।
इसलिए ये व्रत पति-पत्नी के रिश्ते की मजबूती और परिवार की खुशहाली का प्रतीक भी माना जाता है। वट सावित्री व्रत विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जो उनके पति के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए किया जाता है। इस व्रत का पालन करने से न केवल पति-पत्नी के रिश्ते में मजबूती आती है, बल्कि परिवार में सुख और समृद्धि भी बनी रहती है। इस साल पतियों की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री व्रत 6 जून को रखा जाएगा।
वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त
उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष वट सावित्री व्रत 6 जून,दिन गुरुवार को रखा जायेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 52 मिनट से लेकर दोपहर के 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इस दौरान वट वृक्ष की पूजा अर्चना की जा सकती है।
व्रत की विधि
इस दिन प्रातःकाल में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। उसके बाद व्रत का संकल्प लेकर व्रत का आरंभ करें। फिर पूजा की सामग्री जैसे कि लाल कपड़ा, रोली, मौली, चावल, फूल, मिठाई,और विशेष रूप से वट वृक्ष के पूजन के लिए धागा तैयार करें। उसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर उसकी पूजा करें। इसके बाद वृक्ष के चारों ओर धागा लपेटकर उसकी परिक्रमा करें। मान्यता के अनुसार, वट सावित्री व्रत में पूजा के बाद सावित्री और सत्यवान की कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. पूजा और कथा के बाद व्रत का समापन करें।
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा
वट सावित्री व्रत की कथा में सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा महत्वपूर्ण है। कथा के अनुसार, प्राचीन समय में मद्र देश के राजा अश्वपति और उनकी पत्नी मालवी अपने पुत्री के जन्म की अभिलाषा रखते थे। उन्होंने पुत्री प्राप्ति के लिए लंबी तपस्या की और उन्हें देवी सावित्री ने दर्शन देकर वरदान दिया कि वे एक तेजस्विनी कन्या को जन्म देंगी। कुछ समय बाद, उनकी पत्नी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया जिसका नाम सावित्री रखा गया। विवाह योग्य होने पर उसने स्वयं अपने पति को चुनने का निर्णय लिया और वन में भ्रमण के दौरान एक तपस्वी के पुत्र सत्यवान को देखकर उससे विवाह करने का निर्णय किया।