वाराणसी(काशीवार्ता)।वाराणसी जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, अपनी धार्मिक महत्ता और विशेष परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां नवरात्रि के समय देवी दुर्गा की विभिन्न रूपों की पूजा और दर्शन का विशेष महत्व है। इसी कड़ी में काशी के बंगाली टोला मोहल्ले में स्थित 250 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा की कथा अद्भुत और अनोखी है। यह प्रतिमा एक चमत्कारी इतिहास से जुड़ी है, जिसे कभी भी विसर्जित नहीं किया जा सका। इस प्रतिमा को लेकर स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था है।
अद्भुत चमत्कार: 250 साल पुरानी दुर्गा प्रतिमा
यह दुर्गा प्रतिमा 250 साल पहले, सन 1767 में, मुखर्जी परिवार द्वारा स्थापित की गई थी। यह मूर्ति मिट्टी, पुआल, बांस और सुतली से बनी है और आज भी वैसी की वैसी ही है, जैसी उस समय थी। नवरात्रि के पहले दिन से इस प्रतिमा की पूजा शुरू होती है, लेकिन विशेष बात यह है कि इसे कभी भी विसर्जित नहीं किया गया। जब इसे पहली बार स्थापित किया गया था, तो विजयादशमी के दिन प्रतिमा का विसर्जन करने का प्रयास किया गया। लेकिन जब लोगों ने प्रतिमा को उठाने की कोशिश की, तो वह हिल भी नहीं सकी। कई लोग मिलकर इसे उठाने का प्रयास करते रहे, पर कोई भी सफल नहीं हो सका।
स्वप्न में मिला मां दुर्गा का निर्देश
बंगाली परिवार के सदस्यों का कहना है कि उसी रात मुखर्जी परिवार के मुखिया को स्वप्न में मां दुर्गा ने दर्शन दिए और कहा कि “मैं यहां से जाना नहीं चाहती, मुझे यहीं रहने दो। बस रोज़ शाम को मुझे गुड़ और चने का भोग लगा दिया करो।” तभी से यह प्रतिमा विसर्जित नहीं की जाती और यहां पर ही विराजमान है। हर साल दुर्गा पूजा के समय इस प्रतिमा को नए परिधान पहनाए जाते हैं और नवरात्रि की पूजा विधिवत होती है।
श्रद्धालुओं की अपार आस्था
इस चमत्कारी प्रतिमा की महिमा सुनकर लोग दूर-दूर से यहां दर्शन के लिए आते हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह प्रतिमा अपने आप में अनोखी है, क्योंकि इतने वर्षों के बाद भी यह मूर्ति आज भी उतनी ही मजबूत और सुशोभित है जैसे कि 250 साल पहले थी। भक्तों का मानना है कि जो भी व्यक्ति यहां सच्चे मन से आता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। यह प्रतिमा न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि लोगों की गहरी आस्था और विश्वास का प्रतीक भी है।
250 साल पुरानी यह दुर्गा प्रतिमा न केवल काशी की धार्मिक धरोहर है, बल्कि यह आस्था और श्रद्धा का एक ऐसा केंद्र बन गई है, जहां हर वर्ष हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह अद्भुत मूर्ति, जिसे कभी विसर्जित नहीं किया जा सका, एक चमत्कारिक इतिहास से जुड़ी है और यहां आने वाले भक्तों के लिए आशीर्वाद का स्रोत बनी हुई है।