जनता पूछ रही पुलिस कमिश्नरेट बनने के फायदे
वाराणसी (विशेष प्रतिनिधि)। 25 मार्च 2021 वह तारीख थी जब बनारस में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई। वजह बतायी गई कि इससे अपराध नियंत्रण में मदद मिलेगी। तब से अब तक लगभग चार साल बीत चुके हैं। तीन पुलिस कमिश्नर भी नियुक्त हो चुके हैं। याद नहीं पड़ता कि कोई ऐसा दिन नहीं गुजरा हो जब लूट, हत्या या। फिर बलात्कार जैसी घटना न हुई हो। यूँ कहें कि अपराधों में बढ़ोतरी हुई है तो गलत नहीं होगा। पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद सिस्टम में आमूलचूल परिवर्तन हुआ। लगभग दो दर्जन आईपीएस अफसरों की ज़िले में तैनाती हुई। जिनमे एडीजी रैंक के एक, आईजी रैंक के एक, डीआईजी रैंक के एक, एसपी रैंक के पाँच, एडिशनल एसपी रैंक के चार, एएसपी रैंक के एक और डीएसपी रैंक के बारह अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा ज़िले को तीन जोन काशी, गोमती और वरुणा में बाँटा गया। हर जोन का प्रभार आईपीएस रैंक के अधिकारी को सौंपा गया। अब कुल थानों की संख्या 30 हो चुकी है। कमिश्नरेट बनने के बाद कुछ मजिस्ट्रेटी शक्तिया भी पुलिस को दी गयीं। इनके लिए अलग अदालतें बनायी गई। महकमे का वजन पहले से पाँच गुना तक गया। पर अपराध भी इसी रेशियो में बढ़ा।
पहले होता था सिर्फ एक आईपीएस
अब आइए चलते है पुरानी पुलिसिया व्यवस्था के बारे में जानते है। एसएसपी के रूप में सिर्फ. एक आईपीएस अधिकारी होता था। उसके नीचे एसपी सिटी और एसपी ग्रामीण की पोस्ट होती थी, जो आमतौर पर पीपीएस अधिकारी होते थे। इसके नीचे हर सर्किल के अधिकारी होते थे, जिनको सीओ कहा जाता था। इन अधिकारियों के पदनाम याद करना और इनसे मिलना आम जन के लिये बहुत आसान था। जबकि, नयी ATE व्यवस्था में हाल ये गई कि पुलिस वालों के लिए भी सभी अधिकारियों के पदनाम याद कर पाना मुश्किल है। एक तरह से कमिश्नरेट सिस्टम किसी मकड़जाल से कम नहीं है। उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग को इतना भारी भरकम बनाने के बावजूद आपराधिक घटनाओं में कोई कमी नहीं आयी है। बल्कि अब तो पुलिस भी लूट पाट में शामिल हो रही है। भेलूपुर से लेकर हालिया सारनाथ कांड इसका गवाहा है। विदित हो कि भेलूपुर इंस्पेक्टर रमाकान्त दुबे ने एक करोड़ चालीस लाख की डकैती डाली तो सारनाथ में इंस्पेक्टर परमहंस गुप्ता ने व्यापारियों को डरा धमका कर 41 लाख लूट लिये। नदेसर चौकी इंचार्ज सूर्यप्रकाश पांडेय ने तो रोडवेज बस में ही डकैती डाल दी। जी हां, सर्राफा कारोबारी से 40 लाख लूट लिये। इसके अलावा लूटपाट की अन्य घटनाओं में अब तक दर्जनों पुलिस वाले जेल जा चुके हैं। यह सब कुछ पुलिस कमिश्नरेट बनने के चार साल के भीतर हुआ।