बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ काशी में व्यापारियों ने किया प्रदर्शन

वाराणसी(काशीवार्ता) ।हाल ही में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ काशी में एक विशाल प्रदर्शन हुआ। व्यापारियों और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने इस प्रदर्शन में भाग लिया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल थे। प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए हिंदुओं पर अत्याचार रोकने की जोरदार मांग की।

बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति अत्यंत गंभीर बताई जा रही है। शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद से वहां राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है, जिसके कारण अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं, को निशाना बनाया जा रहा है। कई मीडिया रिपोर्ट्स और प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हिंदुओं को धमकियों का सामना करना पड़ रहा है और उनके साथ बर्बरता की जा रही है। इस स्थिति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता पैदा की है।

भारत में, विशेषकर वाराणसी में, इस मामले को लेकर काफी आक्रोश है। स्थानीय व्यापारियों ने बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और भारतीय सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उन्हें भारत लाने के लिए भारत सरकार से तत्काल कदम उठाने की अपील की। यह मांग की गई है कि सरकार बांग्लादेश के अधिकारियों पर दबाव डाले ताकि वहां के अल्पसंख्यकों को सुरक्षित माहौल मिल सके।

बांग्लादेश से लौट रहे कई भारतीय नागरिक वहां हो रही हिंसा की कहानियाँ साझा कर रहे हैं, जिससे स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मामले में भारतीय संसद में भी चर्चा हो रही है और राजनीतिक दलों ने भी सरकार से इस मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभाने का अनुरोध किया है। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि बांग्लादेश में रहने वाले भारतीय परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल मानवाधिकारों का मामला है, बल्कि यह भारत की प्रतिष्ठा और जिम्मेदारी का भी विषय है।

यह विरोध प्रदर्शन केवल हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह मानवता के लिए खड़ा होने की पुकार भी है। प्रदर्शनकारियों का मानना है कि किसी भी देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना विश्व समुदाय की सामूहिक जिम्मेदारी है, और ऐसे मामलों में मौन रहना अत्याचार को बढ़ावा देने के समान है। भारतीय समाज और सरकार से उम्मीद है कि वे इस गंभीर मुद्दे को उचित मंच पर उठाएंगे और समाधान के लिए ठोस कदम उठाएंगे।

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