Alok Srivastava
वाराणसी(काशीवार्ता)। मोदी 3.0 की अगुवाई में भाजपा व सहयोगी दलों ने नई सरकार की शपथ ले ली है। नई सरकार से जहां जनता को उम्मीदें हैं वहीं पीएम मोदी के पास सरकार चलाने की चुनौती भी बेशुमार हैं। पीएम मोदी की पिछली दो सरकारों में भाजपा ने अकेले बहुमत के जादुई आंकड़े को पार करते हुए 2014 में 282 व 2019 में 303 सीटों पर कब्जा जमाया था।
जबकि इस बार लगातार तीसरी बार सत्ता में जरूर आई लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से 32 सीटों से पीछे रह गई। इसलिए इस बार भाजपा की घटक दलों पर निर्भरता व उनके साथ तालमेल बनाकर चलने की चुनौती बहुत आसान नजर नहीं आ रही है। पीएम मोदी ने अपना तीसरा कार्यकाल घटक दलों के साथ समझौते के तहत शुरू किया है। यही कारण है कि मोदी के 72 सदस्यीय नए मंत्रिमंडल में भाजपा के सहयोगियों के मात्र 11 मंत्री ही हैं।
एक दशक बाद देश को मजबूत विपक्ष मिला है, इसलिए नीतियों को लागू कराने के लिए विपक्ष को साथ लेकर चलना पीएम मोदी की मजबूरी होगी। यदि ऐसा नहीं करेंगे तो विपक्ष की अड़ंगेबाजी नीतियों को सफल नहीं होने देगी।
ग्रामीण क्षेत्रों में कड़े निर्णय लेने की जरूरत
सत्तादल व विपक्ष दोनों के लिए राज्यों के होने वाले चुनाव में क्षेत्रीय दलों से सत्ता साझा करने व सीटों के बंटवारे में मोल-भाव की संभावना ज्यादा बढ़ जाएगी। लेकिन देश के सामने मोदी हैं जो फैसलों में दृढ़ संकल्प वाली है। बावजूद इसके गठबंधन पीएम मोदी के फैसलों में रुकावट उत्पन्न करने का प्रयास कर सकता है। गठबंधन सहयोगियों को राज्य की राजनीति के चश्में से देखा जाए तो जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं वहां पीएम मोदी को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। बिहार में लोजपा के चिराग पासवान की पार्टी राजद के लिए बड़ी चुनौती पेश करती नजर आ रही है।
10 वर्षों के पीएम मोदी के कार्यकाल की समीक्षा की जाए तो विकसित भारत का नारा लोगों के सामने है, लेकिन हकीकत है कि बुनियादी ढांचे के निर्माण, नए रोजगार, कौशल विकास और लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने जैसे कार्य पाइप लाइन में ही नजर आ रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां बड़ी हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ाने के प्रयास के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था व अन्य क्षेत्रों में विकास के लिए कड़े निर्णय लेने की जरूरत है। ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा पर निर्भरता बढ़ी है, जिससे स्पष्ट है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सेहत को बहाल करने पर भी ध्यान देना होगा।जनप्रतिनिधियों को जनता की आवाज को संसद में उठाना ही नहीं उसपर कार्य करने की जरूरत होगी। बिना किसी राग और द्वेष, भय एवं पक्षपात के सभी का ध्यान रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी।