आस्थावानों का लगा तांता
पूर्व रोहनिया विधायक ने परिजनों संग किया दर्शन पूजन
वाराणसी-(काशीवार्ता) – काशी के दक्षिण में स्थापित शूलटंकेश्वर महादेव मंदिर में सावन के चौथे सोमवार को भी भक्तों का तांता लगा रहा। भोर से ही घाट से गंगा जल लेकर भक्तगण मंदिर पहुंचने लगे। शहरी क्षेत्र के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की भीड़ लगी रही। भगवान शिव के प्रति अगाध आस्था के साथ पहुंचा कोई भक्त जल से तो कोई दूध से अभिषेक कर उनसे अपने कष्ट हरने और परिवार की सुख समृद्धि की कामना कर रहा था। कुछ लोग नंदी के कान में अपना दुखड़ा सुना रहे थे।
वही पूर्व रोहनिया विधायक सुरेन्द्र नारायण सिंह ने अपने परिजनों के साथ मंदिर में दर्शन पूजन किया साथ ही सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया। उन्होनें पुलिस कर्मियों से कहा कि किसी भी आने जाने वाले दर्शनार्थियों को दिक्कत का सामना न करना पड़े।
यहीं घाट से टकराकर उत्तरवाहिनी हुईं गंगा, माधव ऋषि ने की थी यहां तपस्यादेवों के देव महादेव की नगरी काशी में सावन का विशेष महत्व तो है ही लेकिन शूलटंकेश्वर महादेव का अपना अलग महत्व है। मान्यता है कि यह सिद्ध शिवलिंग है। अगर इस शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ा दिया जाय तो मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। शूलटंकेश्वर महादेव भक्तों के समस्त शूल को हर लेते हैं। जिस तरह मां गंगा के शूल नष्ट करती हैं उसी तरह शूलटंकेश्वर का दर्शन करने वालों के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
काशी के दक्षिण में स्थापित भगवान शिव के इस मंदिर के घाट से टकराकर गंगा उत्तरवाहिनी होकर प्रवेश करती हैं। शहर से 15 किलोमीटर दूर माधवपुर गांव में स्थित शूलटंकेश्वर महादेव विराजते हैं। इस मंदिर में हनुमानजी, मां पार्वती, भगवान गणेश, कार्तिकेय के साथ नंदी विराजमान हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि माधव ऋषि ने गंगा अवतरण से पहले शिव की आराधना के लिए ही यहां पर शिवलिंग की स्थापना की थी। गंगा तट पर तपस्या करने वाले ऋषि-मुनियों ने इस शिवलिंग का नाम शूलटंकेश्वर रखा। इसके पीछे धारणा यह थी कि जिस प्रकार यहां गंगा का कष्ट दूर हुआ उसी प्रकार अन्य भक्तों का कष्ट दूर हो। यही वजह है कि पूरे वर्ष तो यहां भक्त दर्शन को आते ही हैं लेकिन अपने कष्टों से मुक्ति के लिए सावन में भक्तों की भीड़ ज्यादा होती है।
सीकड़ बाबा और दशरथ यादव ने बताया कि पुराणों के प्रसंग के अनुसार गंगा अवतरण के बाद जब वह काशी में अपने रौद्र रूप में प्रवेश करने लगीं तो भगवान शिव ने काशी के दक्षिण में ही त्रिशूल फेंककर गंगा को रोक दिया। भगवान शिव के त्रिशूल से मां गंगा को पीड़ा होने लगी। उन्होंने भगवान से क्षमा याचना की। भगवान शिव ने गंगा से यह वचन लिया कि वह काशी को स्पर्श करते हुए प्रवाहित होंगी। साथ ही काशी में गंगा स्नान करने वाले किसी भी भक्त को कोई जलीय जीव हानि नहीं पहुंचाएगा। गंगा ने जब दोनों वचन स्वीकार कर लिए तब शिव ने अपना त्रिशूल वापस लिया।