शरद पूर्णिमा: खीर बनाने और देवी लक्ष्मी को भोग लगाने की परंपरा

शरद पूर्णिमा, जिसे शरद पूर्णिमा या कोजागर पूर्णिमा भी कहा जाता है, का विशेष महत्व है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा का पर्व 16 और 17 अक्टूबर को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर की शाम 7 बजे से शुरू होकर 17 अक्टूबर की शाम 5 बजे तक रहेगी। इस दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर बनाने और देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में खीर बनाना एक पुरानी परंपरा है। खीर को चंद्रमा की रोशनी में बनाना इसे विशेष लाभदायक मानता है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, और खीर का भोग उनके समर्पित किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि और सुख-समृद्धि का वरदान देती हैं।

इसके साथ ही, इस दिन श्रीकृष्ण का गोपियों के साथ महारास रचाने का भी विशेष महत्व है। भक्त इस दिन विशेष रूप से रात में पूजा-पाठ करते हैं, जिससे उनकी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। शरद पूर्णिमा के अवसर पर कुछ शुभ कार्य भी किए जा सकते हैं, जैसे:

  1. धन और समृद्धि की प्रार्थना: देवी लक्ष्मी के प्रति आभार व्यक्त करना और उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करना।
  2. घर की सफाई और सजावट: इस दिन घर को साफ-सुथरा रखकर उसे सजाना चाहिए, जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो।
  3. भोजन में खीर का समावेश: इस दिन खीर का भोग लगाकर उसका वितरण करना भी पुण्य का काम माना जाता है।

इस प्रकार, शरद पूर्णिमा पर खीर बनाने और देवी लक्ष्मी को भोग लगाने की परंपरा न केवल आध्यात्मिक है, बल्कि यह समाज में समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक भी है।

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