धर्म की रक्षा के किए अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा-रमेश लालवानी

विभाजन की विभीषिका स्मृति दिवस पर विशेष

वाराणसी (काशीवार्ता)। 14 अगस्त 1947 को ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को 2 भागों में विभाजित कर दिया जिसका संताप आज भी विधमान है। लाखो निरीह लोग धर्म के नाम पर मारे गए। लाखों लोग बेघर हो गए और भारत के विभिन्न नगरों में खाली हाथ निर्वासित हो गए। विभाजन की त्रासदी का दंश सिन्ध एवं पंजाब के हिन्दू बच्चों, महिलाओं व वृहद्धज‌नो को झेलना पड़ा। पंजाब को 2 सूबों में बांटा गया एवं सिन्ध प्रान्त पाकिस्तान को दे दिया गया। धर्म की रक्षा के किए अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा नई जगह-नए लोग-नई भाषा एक चैलेंज रहा। उस समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सेवा का अभियान चलाकर निर्वासितो को भरपूर मदद की। उन्हे शरणार्थी शिविरों में जगह दिलाई। उक्त बातें पाकिस्तान से निर्वासित होकर आए देउ मल्ल लालवानी के पुत्र रमेश लालवानी ने अपने पिता से सुने विभाजन की विभीषिका को काशीवार्ता प्रतिनिधि से बताई। कहा कि अपने पुरुषार्थ के बल पर लोगों ने जीविकोपार्जन का मार्ग खोजा और जहां भी सहारा मिला अपने रहने का स्थान बनाया। कोई रेलवे लाइन के किनारे कोई कोई ट्रेन में घूम घूम कर अल्प व्यवसाय करने लगे। जो लोग सम्पन्न थे उन्होंने अपना ठिकाना दूसरे देशों में बना लिया। शिक्षित वर्ग के लोग सरकारी नौकरी खोजने लगे। कांग्रेस ने कागजों पर आवास आवंटन कुछ को गुमटियों के माध्यम से आजीविका का साधन प्रदान करने का कार्य किया। सरकार द्वारा मिले गुमटियों के माध्यम से धीरे-धीरे आत्म निर्भर हो गए। अप‌ने मृदु व्यवहार एवं पुरुयार्थ के साथ स्थानीय लोगों से सामजस्य स्थापित किया। कुछेक ने अपनी क्षमतानुसार राजनीति में सक्रियता दिखलाई। उच्च शिखर पर पहुंचे लालकृष्ण आडवाणी इस बात के प्रतीक हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को अपने कुशल नेतृत्व से पार्टी को शिखर तक पहुंचाया। कहा कि हमारे माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन खाली हाथ होकर शरणार्थी शिविरों में सहारा लेकर जीवन यापन करने को विवश हो गए थे। इस विभीषिका से हम अपनी नई पीढ़ी को जानकारी प्रदान करने के लिए प्रयास कर रहे हैं। आज की स्थितियां परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं। वांग्लादेश के हालात इ‌सका ज्वलंत उदाहरण है। यदि हम सचेत एक संगठित नहीं होगे तो अनेक विभाजन की त्रासदी झेलनी पड़ सकती है।

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