
पितृ पक्ष का समापन पितृ विसर्जन के साथ होता है। यह तिथि हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। पंद्रह दिनों तक अपने पितरों को तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान अर्पित करने के बाद अंतिम दिन यानी पितृ विसर्जन किया जाता है। इसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन पितर अपने वंशजों का आशीर्वाद देकर पुनः अपने लोक लौट जाते हैं।
पितृ विसर्जन केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर भी है। हमारे जीवन में जो कुछ भी है, उसमें पितरों की परंपराओं, संस्कारों और आशीर्वाद की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कारण इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर तर्पण करते हैं और पितरों की आत्मा की शांति के लिए अन्न, जल व दान अर्पित करते हैं।
इस दिन श्रद्धालु पवित्र स्थलों जैसे गंगा, यमुना, नर्मदा आदि नदियों के तट पर जाकर पिंडदान करते हैं। जिनके लिए संभव नहीं हो पाता, वे घर पर ही नियमपूर्वक तर्पण कर सकते हैं। पितृ विसर्जन का संदेश यह है कि हम अपने पूर्वजों को कभी न भूलें और उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलें। यह दिन हमें परिवार और परंपराओं के महत्व की याद दिलाता है।
पितृ विसर्जन का आध्यात्मिक अर्थ है – पूर्वजों की स्मृति में श्रद्धा, कृतज्ञता और सेवा भाव को जीवित रखना। जब हम अपने पितरों को सम्मान देते हैं, तो घर-परिवार में शांति, सुख और समृद्धि का वातावरण बना रहता है। इसलिए पितृ विसर्जन का यह पर्व हमारे जीवन और समाज को जोड़ने वाली एक सशक्त कड़ी है।
नोट:यह लेख धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है।