
गूंज रही जय-जयकार, संकट और पापों से मिलती है मुक्ति
वाराणसी-(काशीवार्ता)- शारदीय नवरात्रि के तीसरे दिन आदि शक्ति के चंद्रघंटा स्वरूप के दर्शन-पूजन का विधान है। काशी में स्थित मां चंद्रघंटा के मंदिर में दर्शन को भक्तों की कतार लगी रही। भोर से ही श्रद्धालु हाथों में नारियल, चुनरी और फूल-माला लेकर मंदिरों में पहुंचने लगे। मंदिर प्रांगण में लंबी कतारें लग गईं। कई भक्त घंटों इंतजार करते रहे और जैसे ही उन्हें माँ के दर्शन हुए, पूरा वातावरण “जय माता दी” के जयकारों से गूंज उठा
मां चंद्रघंटा को शक्ति का ऐसा स्वरूप माना गया है, जो भक्तों के समस्त कष्ट हरकर उन्हें शांति और सुख प्रदान करता है। मान्यता है कि मां के इस स्वरूप की पूजा करने से जीवन के संकट दूर होते हैं और पापों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार, जब असुरों के बढ़ते अत्याचार से देवता त्रस्त हो गए थे, तब मां चंद्रघंटा ने प्रकट होकर असुरों का संहार किया और देवताओं को भयमुक्त किया। उनके गले में चंद्रमा के आकार का घंटा सुशोभित है, जिसकी ध्वनि मात्र से ही दानव और राक्षस कांप उठते थे। इसी कारण उन्हें चंद्रघंटा नाम से पुकारा जाता है। मां चंद्रघंटा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला बताया गया है। उनके दस हाथों में शस्त्र-अस्त्र खड्ग, बाण और त्रिशूल शोभायमान रहते हैं। उनका वाहन सिंह है और वे सदा युद्ध के लिए तत्पर मुद्रा में विराजमान रहती हैं। पुराणों में वर्णन है कि मां चंद्रघंटा की घंटे की भयानक ध्वनि से दुष्ट शक्तियां भयभीत होकर भाग खड़ी होती थीं। मंदिर में दर्शन करने पहुंचे भक्तों ने मां के सामने माथा टेका और चुनरी अर्पित कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। श्रद्धालुओं का कहना था कि माँ के दर्शन मात्र से ही उन्हें मानसिक शांति और आत्मिक ऊर्जा का अनुभव हुआ। कई भक्तों ने यह भी बताया कि माँ चंद्रघंटा की कृपा से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आए हैं और परिवार के कष्ट धीरे-धीरे दूर हो गए।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा के दर्शन का विधान है। माता का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है। माता के मस्तक पर अर्धचंद्र सुशोभित है। माता असुरों का संहार अपने घंटे के नाद से करती हैं। काशी में ऐसी मान्यता है कि किसी का अंतिम समय होता है तो माता उसके कंठ में विराजमान होकर घंटे की ध्वनि से उसे मोक्ष प्रदान करती हैं।