निषाद समुदाय ने गंगा पर क्रुज संचालन का विरोध

वाराणसी(काशीवार्ता)।माँ गंगा निषाद समुदाय के लोगों ने गंगा में चल रही क्रूज का विरोध किया और कहा कि जीवनयापन का मुख्य आधार माँ गंगा और उससे जुड़े संसाधन हैं, जिनमें नौका संचालन और मछली पालन प्रमुख हैं। यह समुदाय सदियों से गंगा पर निर्भर रहा है और सामाजिक रूप से इसकी गहराई से जुड़ा हुआ है। हाल के वर्षों में पूँजीपतियों द्वारा क्रुज संचालन शुरू किया गया है, जिससे निषादों के परंपरागत अधिकारों का हनन हो रहा है।गंगा पर निषादों का अधिकार ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टिकोणों से प्रमाणित है। रामायण में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान श्रीराम ने सर्वगुण सम्पन्न होते हुए भी निषादराज से नदी पार करने के लिए नाव मांगी थी, जो यह दर्शाता है कि गंगा पर निषादों का अधिकार है।हालांकि, जब पहली बार वाराणसी में अलकनंदा क्रुज लाया गया, तो अस्सी घाट पर इसके संचालन के खिलाफ निषाद समाज ने व्यापक आंदोलन किया, जिसके परिणामस्वरूप क्रुज को हटाना पड़ा। लेकिन, यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हुई। कुछ वर्षों बाद कई अन्य क्रुजों का संचालन वाराणसी में शुरू हो गया, जिसमें विवेकानंद और मणिकसाह क्रुज शामिल थे। ये क्रुज बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण सामग्री लाने के लिए लाए गए थे, लेकिन बाद में इन्हें पर्यटकों के लिए चलाया जाने लगा।
हाल ही में, 14 अक्टूबर 2024 को आदिकेशव घाट पर एक और मिनी क्रुज लाने की कोशिश की गई, जिसका निषाद समुदाय ने कड़ा विरोध किया। इसके बावजूद, एक विशाल क्रुज को नमो घाट पर लाकर खड़ा कर दिया गया, जिसकी लंबाई लगभग 70 मीटर थी। समुदाय ने इसे भी हटवाने में सफलता पाई, लेकिन क्रुज संचालकों का दावा है कि उन्हें वहाँ संचालन की अनुमति प्राप्त है। यह स्थान पहले से ही निषादों की नावों के लिए सुरक्षित है, फिर भी अनुमति दिए जाने का प्रश्न निषादों के खिलाफ एक बड़ी साजिश का संकेत हो सकता है।इस पूरी स्थिति में यह भी देखा जा रहा है कि माँ गंगा को स्वच्छ और निर्मल रखने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जबकि दूसरी ओर गंगा के सीने पर बड़े-बड़े होटलों और क्रुजों का निर्माण एक बड़ा अत्याचार है। निषाद समुदाय इसे अपनी सामाजिक, पारंपरिक और आर्थिक अस्तित्व पर सीधा हमला मानता है।इसलिए, निषाद समाज का यह माँग है कि बंगाल गंगा नामक क्रुज को जल्द से जल्द हटाया जाए, ताकि माँ गंगा का प्राकृतिक और सांस्कृतिक अस्तित्व बना रहे, और निषाद समुदाय के पारंपरिक अधिकारों की रक्षा हो सके।

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