नाटी इमली का विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप: आस्था और परंपरा का संगम

वाराणसी(काशीवार्ता)। विश्व की सबसे प्राचीन नगरी, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों के लिए प्रसिद्ध है। इन्हीं धरोहरों में से एक है नाटी इमली का भरत मिलाप, जो हर वर्ष विजयादशमी के अगले दिन मनाया जाता है। यह आयोजन न केवल काशी की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि भारत के सांस्कृतिक कैलेंडर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

भरत मिलाप का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
भरत मिलाप उस पावन क्षण की नाट्य प्रस्तुति है जब भगवान राम, 14 वर्षों के वनवास के बाद, अयोध्या लौटते हैं और उनके छोटे भाई भरत, उनसे मिलने के लिए आतुर होकर आते हैं। यह दृश्य भारतीय पौराणिक कथाओं में भाईचारे, त्याग, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। नाटी इमली का यह भरत मिलाप इसी क्षण की याद में मनाया जाता है, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक हर वर्ष वाराणसी में इकट्ठा होते हैं।

आयोजन का अनूठापन
यह आयोजन नाटी इमली मैदान में सम्पन्न होता है, जहां बिना किसी बड़े मंच या साज-सज्जा के, लोक कलाकारों द्वारा परंपरागत तरीके से रामलीला का मंचन किया जाता है। इसमें नाट्य के माध्यम से राम और भरत के पुनर्मिलन का भावपूर्ण चित्रण होता है। विशेष बात यह है कि यहां पर मंचन करने वाले कलाकार शास्त्रों के अनुसार ही इस कार्यक्रम को निभाते हैं, और इसे देखने के लिए भीड़ हर साल अधिकाधिक बढ़ती जाती है।

संस्कृति और आस्था का अद्भुत संगम
भरत मिलाप केवल एक नाट्य प्रस्तुति नहीं है, यह वाराणसी की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी आस्था और धार्मिकता का प्रतीक है। इस आयोजन में शामिल होकर लोग भगवान राम और भरत के आदर्शों से प्रेरणा लेते हैं और समाज में भाईचारे, सहनशीलता और सेवा के भाव को पुनः जाग्रत करते हैं।
भरत मिलाप के समाप्त होने के बाद, गंगा घाट पर श्रद्धालु एकत्र होते हैं और दीप जलाते हैं। गंगा किनारे का यह दृश्य अत्यंत अद्भुत और आत्मा को शांति देने वाला होता है। वातावरण भक्ति के गीतों, मंत्रोच्चारण और श्रद्धालुओं की भावनाओं से भर जाता है।

वाराणसी का नाटी इमली का भरत मिलाप केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यह कार्यक्रम न केवल स्थानीय निवासियों के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लोगों के लिए आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का अद्वितीय अनुभव प्रदान करता है।

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