वाराणसी(काशीवार्ता)।वाराणसी जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, धर्म और संस्कृति का प्रमुख केंद्र है। यहाँ की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं सदियों से जीवंत हैं और उन्हीं में से एक प्रमुख परंपरा है नाटी इमली भरत मिलाप का आयोजन। इस ऐतिहासिक और धार्मिक आयोजन में लाखों श्रद्धालु उमड़ते हैं, जो पौराणिक गाथाओं और आदर्शों के साक्षात्कार का अनुभव करते हैं।
नाटी इमली भरत मिलाप का आयोजन दशहरे के अगले दिन किया जाता है, जिसमें भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद अपने भाई भरत से मिलाप की अद्भुत कथा का मंचन होता है। वाराणसी के नाटी इमली मैदान में आयोजित यह कार्यक्रम सिर्फ एक नाट्य प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक धार्मिक अनुष्ठान की तरह देखा जाता है। वाराणसी की इस प्राचीन परंपरा का महत्व इस बात से भी झलकता है कि इसे देखने के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक उमड़ते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
नाटी इमली भरत मिलाप का आयोजन लगभग 400 वर्षों से हो रहा है। इसे गोस्वामी तुलसीदास की रामलीला परंपरा का हिस्सा माना जाता है, जो राम और भरत के बीच प्रेम, त्याग और आदर्शों को जीवंत करती है। इस आयोजन का मूल उद्देश्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम और उनके भाई भरत के बीच स्नेह और आदर्शों को समाज के सामने प्रस्तुत करना है। ऐसा कहा जाता है कि जब राम वनवास से लौटकर अयोध्या आए, तब भरत ने भगवान राम का स्वागत किया और राजगद्दी को उनके सुपुर्द कर दिया। इस घटना को भरत के अद्वितीय त्याग और भाईचारे के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
आयोजन का महत्व
नाटी इमली भरत मिलाप का आयोजन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह सिर्फ एक नाटकीय मंचन नहीं, बल्कि रामायण की उस गाथा को पुनर्जीवित करता है, जिसमें भरत और राम का मिलाप भारतीय समाज में भाईचारे, समर्पण और आदर्शों का प्रतीक बन गया है। आयोजन की खास बात यह है कि इसमें भाग लेने वाले पात्र और दर्शक दोनों ही इसे एक आध्यात्मिक अनुभव मानते हैं।
दशहरे के अगले दिन शाम होते ही लोग नाटी इमली मैदान की ओर उमड़ पड़ते हैं। इस अवसर पर नाटी इमली का पूरा क्षेत्र मानो एक धर्ममयी वातावरण में तब्दील हो जाता है। भरत मिलाप की इस अद्भुत झांकी को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग जमा होते हैं। जब राम और भरत का मिलन होता है, तब श्रद्धालु भाव-विभोर होकर जयघोष करते हैं। यह आयोजन इस बात का प्रमाण है कि वाराणसी में धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरें आज भी जीवंत हैं और श्रद्धालुओं की आस्था इन परंपराओं को हर साल नया जीवन देती है।
जनसैलाब और सुरक्षा व्यवस्था
हर साल इस आयोजन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं, जिससे वाराणसी की गलियां और सड़के श्रद्धालुओं से भरी होती हैं। इस वर्ष भी नाटी इमली भरत मिलाप के आयोजन में एक विशाल जनसैलाब देखने को मिला। मैदान के चारों ओर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी, जिससे मानो पूरा क्षेत्र जनसागर में बदल गया।
इस भव्य आयोजन को देखते हुए प्रशासन की ओर से भी विशेष सुरक्षा व्यवस्था की जाती है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी कार्यक्रम स्थल और आस-पास के क्षेत्रों में तैनात होते हैं ताकि भीड़ को नियंत्रित किया जा सके और किसी प्रकार की अव्यवस्था न हो। आयोजकों और प्रशासन की ओर से सुरक्षा और यातायात नियंत्रण के लिए कई इंतजाम किए जाते हैं, ताकि श्रद्धालु बिना किसी परेशानी के इस धार्मिक आयोजन का आनंद ले सकें।
श्रद्धालुओं की आस्था
इस आयोजन में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा होती है। नाटी इमली भरत मिलाप वाराणसी के सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न अंग है, और इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। कुछ लोगों के लिए यह रामायण की कहानी को जीने का अनुभव होता है, तो कुछ के लिए यह भाईचारे और आदर्शों की शिक्षा ग्रहण करने का अवसर।
इस आयोजन में उमड़े जनसैलाब ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वाराणसी की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रभाव न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी है। नाटी इमली भरत मिलाप न केवल वाराणसी की धरोहर है, बल्कि यह उन आदर्शों और मूल्यों की याद दिलाती है जो भारतीय समाज की नींव हैं।