वाराणसी (काशीवार्ता)। महामाहेश्वर अभिनव गुप्त पादाचार्य शैव संस्कृति के उद्धारक हैं। उन्होंने बिना किसी भेद-भाव के साधना और उपासना का प्रचार-प्रसार किया। उन्हीं की अद्वैत सिद्धांत की परम्परा पर चलकर भगवत पाद शंकराचार्य ने सम्पूर्ण भारत भूमि को एकता के सूत्र में बांधा। ये बातें महामाहेश्वर अभिनव गुप्त के जन्म महोत्सव पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता कर रहे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.बिहारी लाल शर्मा ने कही।
अपने उद्बोधन में कहा कि भारत भूमि सिद्धों, योगियों, ऋषियों, मुनियों व देवताओं की तप स्थली भी है। जिसे पुराणों का अध्ययन कर जाना जा सकता है। हमारे देश में नाना प्रकार की भाषाओं का प्रयोग होता है किन्तु समग्रता में उत्तर से लेकर दक्षिण तक पूरब से लेकर पश्चिम तक सर्वत्र संस्कृत ही शास्त्रों को व्यक्त करने की भाषा है। संस्कृत भाषा में ही वह सामर्थ्य है जो बिना किसी भेद भाव के सर्वत्र सम्पूर्ण देश में स्वीकार की जाती है। आये हुए अतिथियों का स्वागत परंपरा के अनुसार किया गया। संचालन प्रो.राधवेन्द्र दुबे ने किया।
इस दौरान अध्यापक परिषद के अध्यक्ष प्रो.रामपूजन पाण्डेय, प्रो.अमित कुमार शुक्ल, जोतिश कुमार गणे, कुष्ण बिहारी द्विवेदी, डॉ.पद्माकर मिश्र, प्रो.सुधाकर मिश्र, प्रो.एम.किशोर त्रिपाठी, प्रो.शम्भू नाथ शुक्ला, डॉ.प्रिंस मिश्र, डॉ.ए.लक्ष्मणराव शास्त्री, डॉ.चन्द्रशेखर सिंह, डॉ.विवेक उपाध्याय, डॉ.निगमेश्वर पाण्डेय, बुद्धिलाल यादव,जनसम्पर्क अधिकारी शिशेन्द्र मिश्र मौजूद रहे।