कार्यक्रम का सुभारम्भ गिरिजा देवी की शिष्या रुचिरा केदार ने राग पीलू की ठुमरी पपीहा पी की बोली न बोल के साथ किया
वाराणसी (काशीवार्ता)। कला प्रकाश का वार्षिक आयोजन कजरी ठुमरी उत्सव कैंटोनमैंट स्थित एक होटल में संपन्न हुआ। बड़ी संख्या में देर शाम तक कार्यक्रम में संगीत प्रेमियों ने पारम्परिक बनारसी कजरी ठुमरी का आनन्द लिया। कार्यक्रम का प्रारम्भ गिरिजा देवी की शिष्या रुचिरा केदार ने राग पीलू की ठुमरी पपीहा पी की बोली न बोल के साथ किया। इसके बाद दादरा तुम सांची कहो की सुन्दर प्रस्तुति दी। अगली पेशकश में कजरी सावन झर लगी धीरे धीरे प्रस्तुत कर ‘झूला धीरे से झुलाओ’ के गायन से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। तबले पर पं.कुबेरनाथ मिश्र, हारमोनियम पर पं.धर्मनाथ मिश्र तथा तानपूरे पर नित्या ने संगत किया। तत्पश्चात बनारस घराने के युवा गायक डॉ.शुभंकर डे ने बनारसी कजरी ठुमरी के रस से श्रोताओं को सराबोर किया। आरम्भ राग देस की ठुमरी बरखा ऋतु बैरी हमारी से किया। घेरि घेरि आई सावन बदरिया कजरी प्रस्तुत कर बनारस की प्रसिद्ध कजरी हमरे सांवरिया नहीं आए का सुमधुर गायन किया। कलाकारों का स्वागत नीरज अग्रवाल, रुचि अग्रवाल, राजेश भार्गव, सतीश जैन एवं अशोक कपूर ने किया। संयोजन डॉ.आशीष जायसवाल व डॉ.अनुराधा रतूड़ी ने तथा संचालन सौरभ चक्रवर्ती ने किया।