जिउतिया व्रत : संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि का पर्व

जिउतिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत की विशेषता यह है कि इसे निर्जला उपवास के रूप में किया जाता है, यानी पूरे दिन जल ग्रहण किए बिना उपवास रखा जाता है। यह पर्व मुख्यतः बिहार, झारखंड और पूर्वांचल क्षेत्रों में बड़ी धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत संतान की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए किया जाता है।

तीन दिवसीय अनुष्ठान

जिउतिया व्रत का आयोजन तीन दिनों तक चलता है।

  1. सप्तमी तिथि – व्रत की शुरुआत होती है और महिलाएं विशेष पूजन कर संकल्प लेती हैं।
  2. अष्टमी तिथि – इस दिन माताएं निर्जला उपवास करती हैं। दिनभर बिना जल और अन्न ग्रहण किए पूजा-अर्चना में लीन रहती हैं।
  3. नवमी तिथि – व्रत का पारण किया जाता है। महिलाएं स्नान के बाद पूजा कर फलाहार और भोजन ग्रहण करती हैं।

धार्मिक महत्व

धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के अनुसार, जिउतिया व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण और जीवित्पुत्रिका माता की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह व्रत संतान की रक्षा करता है और जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत की पुण्य प्रभाव से बच्चों की उम्र लंबी होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू

बिहार में छठ पूजा के बाद यह दूसरा सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। इस अवसर पर महिलाएं गीत गाती हैं, कथा-कहानियां सुनती हैं और सामूहिक रूप से पूजा करती हैं। व्रत केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और मातृत्व की शक्ति का भी प्रतीक है।

TOP

You cannot copy content of this page