विशेश्वरगंज व मछोदरी की कई फर्मे हो गई थीं दिवालिया
साबुन बनाने वाले अखाद्य तेल से वनस्पति घी बना कर की अकूत कमाई
वाराणसी (काशीवार्ता)। दीनानाथ झुनझुनवाला ने 90 के दशक में वनस्पति घी में सट्टा जैसी गतिविधियों से अनेक व्यापारियों को बर्बाद कर दिया। वनस्पति में सट्टेबाजी से विशेश्वरगंज और मछोदरी मंडी की कई फर्में दिवालिया हो गई। इसीलिए कहा जाता है, जैसी करनी, वैसी भरनी। नब्बे के दशक के अंत और इक्कीसवी सदी के शुरूआती वर्षों में खाद्य तेलों में रोजाना काफी तेजी और मंदी आती थी। इससे वनस्पति घी के भाव में भी काफी उतार-चढ़ाव आता था। इसपर झूला वनस्पति ने 15 दिन की स्कीम की शुरूआत की। कोई भी व्यापारी चाहे जितना बड़ा आर्डर दे सकता है लेकिन, निर्धारित तारीख पर या उससे पहले डिलिवरी लेनी पड़ेगी। यदि डिलिवरी नहीं लेता है तो निर्धारित डिलिवरी डेट पर जो रेट होगा, उस रेट पर डिलिवरी मानकर भाव के अंतर का लेन-देन हो जाएगा।
इस स्कीम की शुरूआत के साथ ही झूला वनस्पति में सट्टेबाजी की शुरूआत हो गई। जिस व्यापारी के यहां सप्ताह में 50 टीन वनस्पति की औसत बिक्री थी, वह भी तेजी की उम्मीद लगने पर एक-एक हजार टीन का आर्डर लिखाने लगा। क्लियरिंग डेट पर आमतौर पर व्यापारी घाटे में रहते थे क्योंकि भाव निर्धारित करना तो झूला मैनेजमेंट के हाथ में होता था।
बताया जाता है कि जिस पखवारे अधिक आर्डर पेंडिंग नहीं होते थे, उस पखवारे क्लियरिंग डेट पर व्यापारियों को लाभ पहुंचाने वाला ही रेट खुलता था ताकि भविष्य के लिए व्यापारियों को सट्टेबाजी के प्रति लालच बनी रहे। इस सट्टेबाजी के चक्कर में स्थानीय विशेश्वरगंज और मछोदरी सहित पूर्वांचल के कई जिलों के खाद्य तेल व्यापारी आर्थिक तंगी में उलझ गए। कई फर्म दिवालिया भी हो गई। सीनियर सिटीजन को याद होगा, सत्तर के दशक में चर्बी आयात घोटाला उजागर हुआ था। इंदिरा गांधी को चुनाव में हराने वाले राजनेता लोकबंधु राजनारायण ने उस समय के सबसे बड़े ब्रांड के वनस्पति घी में चर्बी मिलाने का आरोप लगाया था। इसी आरोप ने नब्बे के दशक में झूला ब्रांड के प्रमोटरों को धन कमाने का रास्ता सुझाया।
भारतीय कानून के अनुसार वनस्पति घी में चालीस मेल्टिंग प्वाइंट तक का ही खाद्य तेल इस्तेमाल किया जा सकता था। मतलब चालीस डिग्री गर्मी पर जो तेल पूरी तरह पिघला हुआ हो। वनस्पति में तिल तेल की भी कुछ मात्रा मिलाना जरूरी था। कई देशों में 40 से अधिक मेल्टिंग प्वाइंट का तेल अखाद्य की श्रेणी में आता है और जानवरों को भी खिलाने पर रोक है। इसलिए विदेशों में 50 मेल्टिंग प्वाइंट का अखाद्य तेल काफी सस्ता उपलब्ध हो जाता है।
क्रूड आयल के नाम पर इम्पोर्ट करने पर ड्यूटी भी कम लगती थी। इसके पीछे कारण यह है कि मनुष्य के शरीर का औसत तापमान 37 डिग्री के आसपास होता है। इससे अधिक मेल्टिंग प्वाइंट के तेल से वनस्पति घी बना तो वह शरीर के अंदर नसों में जम जाएगा जिससे स्वास्थ्य में कई परेशानियां उत्पन्न होगी। बताया जाता है, सत्तर के दशक में जिसे चर्बी समझकर कस्टम वालों ने सीज कर दिया था, वह वास्तव में 55-60 मेल्टिंग प्वाइंट का अखाद्य तेल ही था और साबुन बनाने के लिए आयात किया गया था।
वनस्पति घी कई प्रकार के रिफाईंड तेल को मिलाकर बनाया जाता है। चिकनाहट बढ़ाने के लिए दो-तीन प्रतिशत ग्लेसरीन भी मिलाई जाती है। मैन्यूफैक्चरिंग प्लाण्ट में रिफाईंड तेलों के मिश्रण में हाइड्रोजन गैस पास कराने पर तेल जमकर वनस्पति घी बन जाता है। इसीलिए दीनानाथ झुनझुनवाला ने साबुन बनाने के नाम पर काफी सस्ता हाई मेल्टिंग प्वाइंट का अखाद्य तेल आयात करना शुरू कर दिया। कागजों पर बहुत से बेनामी साबुन कारखाने भी खुल गए। अखाद्य तेल को साफ करने के लिए आयल रिफाइनरी प्लांट भी लगा लिया। बस यहीं से शुरू हुआ, साबुन बनाने वाले अखाद्य तेल से वनस्पति बनाकर धन बटोरने का व्यापार। विदेशों में जिस तेल को जानवरों को भी खिलाने पर रोक है, अपने देश में उसी अखाद्य तेल से निर्मित वनस्पति खुलेआम बाजार में बिक रहा था। अब जो लोगों को जहर खिलाएगा, उसके जीवन में कभी न कभी तो जहर घुलेगा ही।
‘जैसी करनी, वैसी भरनी’
कानून के कमजोर पक्ष का लाभ उठाते हुए अरबों रुपए कमाने वाले आज खुद कानून के शिकंजे में है। बाप को आगे कर बैंकों और शेयरों के पब्लिक इश्यू से आम से खास तक से धन बटोरने वाले बेटे बहुत पहले ही घर (आवास) में अपना किचेन अलग कर चुके थे। अब दो पौत्र भी दादा और पिता का धन हथियाकर, एक बैंकाक तो एक सिंगापुर में अपना रोजगार जमा चुके हैं। लगभग 15 वर्ष पूर्व अपने 75वें जन्मदिन पर पांच सितारा होटल में हेमा मालिनी के नृत्य के साथ अतिथियों के बीच केक काटने वाले दीनानाथ झुनझुनवाला पर प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों का शिकंजा लगातार कसता जा रहा है।