गुरुकुल के गुरु-शिष्य की परंपरा की मिसाल: गोरक्षपीठ

शिक्षक दिवस पर विशेष

लखनऊ। भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है, जो पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में आयोजित होता है। डॉ. राधाकृष्णन एक महान शिक्षक और दार्शनिक थे। यह दिन शिक्षकों के प्रति सम्मान और आभार प्रकट करने के लिए समर्पित है, और स्कूलों एवं संस्थानों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

भारतीय गुरुकुल की गुरु-शिष्य परंपरा

भारतीय गुरुकुल परंपरा में शिक्षक अपने शिष्य को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि संस्कार और जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों की शिक्षा भी देता है। इस परंपरा में गुरु अपने शिष्य को शास्त्र और शस्त्र दोनों की शिक्षा देकर उसे योग्य बनाता है। यदि शिष्य गुरु से भी आगे बढ़ता है, तो गुरु को गर्व होता है। यह परंपरा भारतीय इतिहास के कई महान उदाहरणों में देखने को मिलती है। भगवान श्रीराम ने अपने गुरु विश्वामित्र से न केवल शिक्षा ग्रहण की, बल्कि असुरों का संहार करके गुरु के यज्ञ की रक्षा भी की। महाभारत में अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य का उदाहरण भी इसी परंपरा का एक उदाहरण है।

गोरक्षपीठ की अनूठी गुरु-शिष्य परंपरा

पिछले 100 वर्षों में गोरक्षपीठ की गुरु-शिष्य परंपरा ने भी इसी गुरुकुल परंपरा की अद्वितीय मिसाल पेश की है। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ, ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ, और वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ—इन तीन पीढ़ियों ने इस परंपरा को और भी महान बनाया है। यह संबंध सिर्फ शिक्षा और मार्गदर्शन तक सीमित नहीं था, बल्कि एक-दूसरे के प्रति अटूट भरोसे और समर्पण पर आधारित था।

गुरु-शिष्य के आपसी विश्वास की अद्वितीय मिसाल

योगी आदित्यनाथ ने अपने गुरु, महंत अवेद्यनाथ के साथ अपनी यादों को साझा करते हुए बताया कि उनके गुरु ने उन पर कितना विश्वास किया। एक संस्मरण में, उन्होंने बताया कि एक बार जब महंत अवेद्यनाथ की तबियत बिगड़ी, तो योगी जी ने उन्हें सहारा दिया। तब महंत जी ने कहा, “अब तुम मेरा भार उठा सकते हो।” यह उनके गुरु का शिष्य पर गहरा विश्वास दर्शाता है।

इसी तरह, एक अन्य घटना में जब चिकित्सक ने महंत जी से पूछा कि वे किस पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं, तो उन्होंने योगी जी की ओर इशारा करते हुए कहा, “अब जो पूछना है, इनसे ही पूछो।” यह घटना शिष्य के प्रति गुरु के संपूर्ण समर्पण और विश्वास का प्रतीक है।

सितंबर: गुरु-शिष्य परंपरा का जीवंत प्रमाण

सितंबर का महीना गोरक्षपीठ में गुरु-शिष्य के इस अद्वितीय रिश्ते की जीवंत मिसाल बनता है। इस माह में महंत दिग्विजयनाथ और महंत अवेद्यनाथ की पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों में देशभर के संत, धर्माचार्य, और विद्वान जन श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। इस दौरान कथा, प्रवचन, और संगोष्ठी के माध्यम से गुरु-शिष्य परंपरा को सम्मान दिया जाता है।

गोरक्षपीठ की यह अनूठी परंपरा न केवल धर्म और अध्यात्म में मार्गदर्शन प्रदान करती है, बल्कि सामाजिक और नैतिक जिम्मेदारियों को भी सिखाती है।

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