वाराणसी(काशीवार्ता)। अगहन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर काशी की प्राचीन परंपरा, अंतरगृही परिक्रमा यात्रा में रविवार को श्रद्धा और आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। पापों के शमन और आत्मिक शुद्धि के लिए सैकड़ों श्रद्धालुओं ने सिर पर गठरी और कंधे पर झोला लिए नंगे पांव इस पवित्र परिक्रमा में भाग लिया।
परिक्रमा यात्रा ज्ञानवापी में पंच विनायकों के दर्शन और बाबा विश्वनाथ के मुक्ति मंडप में संकल्प लेकर मणिकर्णिका तीर्थ पर स्नान के साथ आरंभ हुई। इस यात्रा में 75 पवित्र तीर्थों की परिक्रमा की गई। श्रद्धालु मणिकर्णिका घाट से अस्सी घाट तक नाव से और वहां से पैदल संकटमोचन, जगन्नाथ मंदिर, रामानुज कोट, खोजवां,ककरमत्ता, मंडुवाडीह, लहरतारा, और वरुणा पुल होते हुए मणिकर्णिका घाट पहुंचे।
शनिवार की रात में चौकाघाट पर उपलों के अहरे जलाए गए और बाटी-चोखा बनाकर श्रद्धालुओं ने भोजन किया। रात्रि विश्राम के बाद परिक्रमा यात्रा पुनः प्रारंभ हुई। पिशाचमोचन स्थित कर्पदीश्वर महादेव के दर्शन का भी इस यात्रा में विशेष महत्व है।
श्रद्धालुओं के हर-हर महादेव और काशी विश्वनाथ गंगे के जयघोष से वातावरण भक्तिमय हो गया। ठंड के बावजूद महिलाओं और पुरुषों ने पूरे मनोयोग से इस यात्रा में भाग लिया। मान्यता है कि इस यात्रा से व्यक्ति निरोग रहता है और पापों का प्रायश्चित होता है।
काशी की यह परंपरा, धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को जीवंत बनाए हुए है, जो हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।