सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति करता है विवि प्रशासन, कभी भी हो सकती है बड़ी घटना
सूर्यास्त के बाद अंधेरेमें डूब जाता है परिसर, पहले हो चुकी घटनाओं से भी नहीं चेते जिम्मेदार
(आलोक श्रीवास्तव)
वाराणसी (काशीवार्ता)। कोलकाता में महिला चिकित्सक से बलात्कार के बाद उसकी नृशंस हत्या से पूरा देश उद्वेलित है। विरोध में देशभर के रेजिडेंटों ने आकस्मिक चिकित्सा को छोड़कर सभी सेवाओं को ठप्प कर दिया। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सर सुंदर लाल चिकित्सालय के रेजिडेंट भी हड़ताल पर हैं। जिससे मरीजों का बुरा हाल है। हालांकि, सीनियर डॉक्टर मोर्चा सँभाले हैं, लेकिन मरीजों के भारी दबाव के आगे यह उँट के मुंह में जीरा ही साबित हो रहा है। दरअसल, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी परिसर कहीं से भी महिला रेजिडेंट के लिए सुरक्षित नहीं है। परिसर में सूर्यास्त के बाद अधिकांश भाग में अंधेरा ही रहता है। कई बार रात के समय छात्राओं के साथ गलत हरकतें हो चुकी हैं। जबकि, विवि प्रशासन का दावा है की परिसर में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था है। यदि है तो शायद आईआईटी की छात्रा के साथ जो हुआ वो नहीं होता। खैर, देखा जाये तो देश के किसी भी
मेडिकल कालेज में महिला चिकित्सकों के लिए सुरक्षा नाम की कोई चीज नहीं है। जबकि उन्हें मरीजों की देखभाल के लिए देर रात हॉस्टल या आवास से आना-जाना पड़ता है। बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी का भी यही हाल है, जहां महिला चिकित्सक देर रात अपने मरीजों को देखने के लिए एक वार्ड से दूसरे वार्ड में जाती हैं। इस दौरान यदि उनके साथ कोई अनहोनी हो जाये तो इसका जिम्मेदार आखिर कौन होगा? यह एक यक्ष प्रश्न है। यही कारण है कि परिसर, वार्ड, इमरजेंसी वार्ड में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर बीएचयू की महिला चिकित्सक कई बार आंदोलन भी कर चुकी हैं। फिलहाल, सर सुंदरलाल अस्पताल में महिला डॉक्टरों की निजी सुरक्षा और दूसरे वार्डों में आने जाने के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। उनके लिए न तो अलग से कोई रिटायरिंग रूम है और न ही शौचालय। पुरुष और महिला रेजीडेंट को ड्यूटी के दौरान एक ही कमरा एलॉट है। यहां हर रोज हजारों लोगों का आवागमन होता है। इनकी सुरक्षा के लिए अस्पताल में 135 और ट्रॉमा सेंटर में 96 सुरक्षाकर्मी लगाए गए हैं। वे तीन शिफ्ट में ड्यूटी देते हैं। अस्पताल में एक शिफ्ट में 45 सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं। पिछले साल नर्सों के साथ दुर्व्यवहार के बाद लंका पुलिस ने इमरजेंसी वार्ड के पास एक पुलिस बूथ स्थापित किया था। जो अब हट चुका है। तीमारदार बनकर कोई भी वार्ड तक पहुंच जाता है। यहां तक कि लोग रेजीडेंट डॉक्टरों के कमरे तक भी पहुंच जाते हैं। रात में ड्यूटी करने वाली महिला रेजिडेंट की जान हमेशा सांसत में रहती है।
निजी अस्पतालों की सुरक्षा का क्या ?
जनपद के निजी चिकित्सालयों की सुरक्षा पर भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। ऐसे कई चिकित्सालय हैं जहां महिला चिकित्सक कार्यरत हैं। अक्सर इन अस्पतालों में मारपीट व होता रहता है। कई बार तो गोलीबारी की घटना भी हो चुकी है। लेकिन इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी ने नहीं उठा रखी है। हालाकि इनका रजिस्ट्रेशन जिला प्रशासन के द्वारा ही किया जाता है। तमाम जद्दोजहद के बाद इन्हें अस्पताल चलाने का लाइसेंस मिल जाता है, लेकिन इनकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। कुछ अस्पताल प्रबंधक अपने खर्च पर प्राइवेट गार्ड रखते हैं लेकिन वो सुरक्षा के नाम पर ऊंट में मुंह में जीरा ही साबित होते हैं।