हार नहीं माननी है और अंत तक लड़ना है, टी20 विश्व कप जीत बनी हॉकी दिग्गज Sreejesh की प्रेरणा

न्यूज़ डेस्क । ‘अंत तक हार नहीं माननी है और लड़ते रहना है’, भारतीय क्रिकेट टीम की टी20 विश्व कप में खिताबी जीत ने अपना चौथा ओलंपिक खेलने जा रहे भारतीय हॉकी के महान गोलकीपर पी आर श्रीजेश को भी प्रेरित किया है जो इसे पेरिस में याद रखेंगे। भारत ने दक्षिण अफ्रीका को टी20 विश्व कप के रोमांचक फाइनल में हार की कगार पर पहुंचने के बाद हराया और 11 साल बाद आईसीसी खिताब जीता। श्रीजेश ने को दिये इंटरव्यू में कहा ,‘‘ मैने फाइनल मैच देखा था। मैने इससे सबसे बड़ी सीख ली है कि आखिरी गेंद से पहले जश्न नहीं मनाना है। दक्षिण अफ्रीका 15वें ओवर तक आसानी से जीत रहा था लेकिन भारतीय टीम ने उम्मीद नहीं छोड़ी और हार की कगार पर पहुंचकर जीत दर्ज की।’’

भारत के लिये 328 मैच खेल चुके 36 वर्ष के इस दिग्गज ने कहा ,‘‘ इससे हमें ही नहीं बल्कि ओलंपिक जाने वाले हर खिलाड़ी को सीखना चाहिये। हार नहीं माननी है, इंतजार करना है और अंतिम समय तक डटे रहना है, जीत जरूर मिलेगी। मैं इसे ओलंपिक में याद रखूंगा।’’ बोर्ड के इम्तिहान में ग्रेस अंक पाने के लिये हॉकी खेलना शुरू करने से ओलंपिक पदक जीतने और चौथा ओलंपिक खेलने तक, श्रीजेश ने दो दशक के अपने कैरियर में लंबा सफर तय किया है। उन्होंने चौथा ओलंपिक खेलने के बारे में कहा ,‘‘ यह बहुत सम्मान और गर्व की बात है लेकिन इसके साथ जिम्मेदारियां भी हैं। युवाओं के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी, टीम को लक्ष्य हासिल करने के लिये प्रेरित करने की जिम्मेदारी।’’

उन्होंने कहा ,‘‘ मेरा सफर सपने जैसा रहा है। बोर्ड परीक्षा में ग्रेस अंक लेने के लिये खेलना शुरू किया तो कभी सोचा नहीं था कि भारत की जर्सी पहनूंगा और ओलंपिक खेलूंगा। चौथा ओलंपिक सपना ही लगता है। अब तक धनराज पिल्लै ने ही चार ओलंपिक, चार विश्व कप, चैम्पियंस ट्रॉफी और एशियाई खेलों में भाग लिया। चार ओलंपिक खेलने वाला मैं पहला गोलकीपर हूं , विश्वास नहीं होता।’’ उन्होंने कहा ,‘‘ ओलंपिक का सफर बच्चे की तरह होता है। पहले आप असहाय होते हैं, फिर लड़खड़ाकर चलते हैं और फिर दौड़ते हैं। इसी तरह लंदन ओलंपिक 2012 बुरे सपने की तरह रहा जिसमें हम सारे मैच हार गए। रियो 2016 में प्रदर्शन बेहतर रहा और इन दोनों ओलंपिक से मिले सबक ने हमें तोक्यो के लिये तैयार किया।’’

एफआईएच के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहे श्रीजेश ने कहा ,‘‘ हमने युवाओं के साथ अपने अनुभव बांटे और उन्हें वह गलतियां नहीं दोहराने के लिये कहा। इसी से हम 41 साल बाद ओलंपिक पदक जीत सके।’’ जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक के मुकाबले में भारत की जीत के नायक रहे श्रीजेश ने कहा,‘‘ अपेक्षायें तो होंगी ही लेकिन इन्हें सकारात्मक लेने की जरूरत है। मैं युवाओं से यही कहता हूं कि आलोचना होगी, अपेक्षायें भी रहेंगी लेकिन मैदान पर आप बॉस हो। अपने बेसिक्स पर डटे रहो और खेल का मजा लो।’’ उन्होंने कहा ,‘‘ मैने लंबे समय से खेला है , कामयाब रहा और नाकाम भी हुआ। जब मैं युवाओं को कुछ बताता हूं तो वह समझते हैं। मैं उन्हें चुनौतियां देता रहता हूं ताकि वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें।’’

उन्होंने कहा,‘‘ ओलंपिक में काफी दबाव होता है। यह प्रेशर कुकर की तरह है। मीडिया की नजरें आप पर होती है, सोशल मीडिया पर लोग राय देने लगते हैं और आपका ध्यान भटक जाता है। मैं यही सलाह देता हूं कि बाहरी आवाजें सुने बिना अपने खेल पर फोकस रखो।’’ भारतीय क्रिकेट की दीवार राहुल द्रविड़ ने बरसों पहले उन्हें एक सलाह दी थी और अपने कैरियर में उन्होंने इस पर हमेशा अमल किया। उन्होंने कहा ,‘‘ मैं द्रविड़ भाई से बरसों पहले मिला था। उन्होंने मुझे संयम की अहमियत के बारे में बताया। उन्होंने कहा था कि अपने मौके का इंतजार करो। मैंने वही किया। मैं रातोंरात सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर नहीं बन गया। मैने सही मौकों का इंतजार किया।’’

भारत को ओलंपिक में अर्जेंटीना , आस्ट्रेलिया और बेल्जियम जैसी दिग्गज टीमों का पूल मिला है लेकिन श्रीजेश इससे दबाव में नहीं हैं। उन्होंने कहा ,‘‘ मैं मैच परिदृश्य की कल्पना करके ही खेलता हूं। इससे दबाव में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाता हूं। हम 365 दिन हॉकी खेलते हैं लेकिन मैदान, दर्शक और माहौल दबाव बनाते हैं। इस दबाव से बखूबी निपटने वाला ही सफल रहता है। हम अभ्यास में इसी माहौल की कल्पना करके खेलते हैं ताकि मैच के दिन कामयाब रहें।

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