थ्रंबोलिसिस से अब तक 100 लोगों की बचाई गई जान-सीएमओ

हार्ट अटैक के रोगियों के लिए वरदान बनी ‘स्टेमी केयर परियोजना’

वाराणसी (काशीवार्ता)। जनपद के राजकीय चिकित्सालयों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर संचालित हृदयाघात देखभाल परियोजना के तहत प्रदान की जा रही इलैक्ट्रो कार्डियोग्राफी व थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया हृदयाघात रोगियों के लिए बरदान साबित हो रही है। इसके अंतर्गत अब तक लगभग 100 रोगियों की जान बचाई जा चुकी है। जनपद में क्रियाशील हार्ट सेंटरों पर आये हृदयाघात के शत प्रतिशत रोगियों की जान बचाई गयी है। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी ने बताया कि जिले के राजकीय चिकित्सालय पं.दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय, एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय कबीर चौरा, एसवीएम राजकीय चिकित्सालय भेलूपुर व 11 सीएचसी में क्रियाशील हार्ट सेंटर पर ईसीजी व थ्रंबोलिसिस की सुविधा उपलब्ध है। सीएमओ ने कहा कि शिमला के बाद उत्तर भारत में वाराणसी दूसरा केंद्र है जो रिपरफ्यूजन थेरेपी राजकीय क्षेत्र में प्रदान कर रहा है। आईसीएमआर की हृदयाघात परियोजना (स्टेमी केयर प्रोजेक्ट) को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रो.धर्मेंद्र जैन व रिसर्च साइंटिस्ट डॉ.पायल सिंह के सहयोग से संचालित किया जा रहा है। परियोजना के तहत बीएचयू ‘हब’ एवं जनपद के सभी राजकीय चिकित्सालय एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ‘स्पोक’ के रूप में कार्य कर रहे हैं। अब तक सीएचसी शिवपुर में एक, सीएचसी चोलापुर में पांच, एसवीएम भेलूपुर में सात, एसएसपीजी मंडलीय चिकित्सालय कबीरचौरा में 36, पं.दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय में 47 एवं लाल बहादुर शास्त्री राजकीय चिकित्सालय में चार हृदय रोगियों को थ्रंबोलाइज के माध्यम से जान बचाई गई है। एसवीएम राजकीय चिकित्सालय के अधीक्षक डॉ.क्षितिज तिवारी ने बताया कि अब तक 24743 रोगियों का ईसीजी किया गया है। किसी व्यक्ति को सीने में अचानक से तेज दर्द होने पर यदि वह एक घंटे के अंदर गोल्डन आवर में ही चिकित्सालय पहुंच जाता है तो उसे थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत एक विशेष प्रकार के इंजेक्शन देकर स्थिर किया जा सकता है। वहीं व्यक्ति को सीने में लगातार दर्द हो रहा हो तथा वह चार से छह घंटे में चिकित्सालय पहुंच जाता है तो उस विंडो पीरियड में थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया पूर्ण की जा सकती है तथा मरीज की जान बचाई जा सकती है। यदि रोगी के सीने में लगातार दर्द हो रहा है तो ऐसी स्थिति में भी मरीज 12 घंटे के अंदर चिकित्सालय पहुंच जाता है तो उस पीरियड में भी थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत एक विशेष प्रकार के इंजेक्शन देकर उसे स्थिर किया जा सकता है। कहा कि थ्रंबोलिसिस प्रक्रिया के अंतर्गत लगाए जाने वाला इंजेक्शन, मरीज के नसों में रक्त के अवरुद्ध प्रवाह को दूर करने की प्रक्रिया को पूरा करता है। इससे मरीज स्थिर हो जाता है और उसकी जान बच जाती है। हार्ट अटैक आने या मरीज में हृदयाघात की समस्या दिखाई देने पर उसे थ्रंबोलिसिस थेरेपी दी जाती है, इससे मरीज ठीक हो जाता है।

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