भारत की कुछ जगहों पर चातुर्मास को चौमासा भी कहा जाता है। चातुर्मास में जगत पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु योग या शयन निद्रा में चले जाते हैं और पूरी सृष्टि के संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव के हाथों में सौंप देते हैं। चातुर्मास में शुभ-मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास शुरू हो जाता है। इस बार चातुर्मास की शुरुआत 17 जुलाई से हो रही है। इस दौरान कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इससे श्रीहरि प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। आइए, जानें कि चातुर्मास के नियम कौन-से हैं-
चातुर्मास में इन चीजों से करें परहेज
चातुर्मास में दही, तेल, बैंगन, पान, पत्तेदार सब्जियां, चीनी, मसालेदार भोजन, मांस, शराब आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास में पान छोड़ने से भोग, दही छोड़ने से गोलोक, गुड़ छोड़ने से मिठास और नमक छोड़ने से पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। चातुर्मास हरी पत्तेदार सब्जियां, भाद्रपद या भादो माह में दही, अश्विन माह में दूध और कार्तिक में लहसुन-प्याज खाने की मनाही होती है। इसके साथ ही चातुर्मास के दौरान काले और नीले रंग के कपड़े भी नहीं पहनने चाहिए।
चातुर्मास के नियम
चातुर्मास आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है। इन 4 महीनों के दौरान रोजाना सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
चातुर्मास के दौरान सभी नियमों का पालन करना चाहिए। मन में बुरे विचार और बुरी बातों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। पूजा-पाठ में मन लगाना चाहिए।
चातुर्मास के व्रत पूरे नियमपूर्वक और श्रद्धापूर्वक करने चाहिए। इस दौरान अपने क्रोध और वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। साथ ही दूसरों के बारे में बुरा बोलने से बचना चाहिए।