भाजपा का बेड़ा गर्क करने में नौकरशाही सबसे आगे: जनप्रतिनिधि बेअसर, समस्याओं के समाधान में जनता के छूट रहे पसीने

वाराणसी (काशीवार्ता)। 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके है। नई एनडीए सरकार ने शपथ भी ले ली है,लेकिन भाजपा के बहुमत से पीछे रह जाने व अयोध्या में हार के साथ ही वाराणसी में नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर काफी कम होना अभी भी चर्चा में बना हुआ है। हर कोई अपनी तरह से खामिया निकाल रहा है, लेकिन कोई ये आंकलन नहींं कर पा रहा है कि इस हार में नौकरशाही भी कम जिम्मेदार नहीं है।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया में जनप्रतिनिधियों को अनसुना कर कहीं न कहीं सरकार के खिलाफ नाराजगी की जड़ में इनकी भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कारण सरकार की नौकरशाही पर हद से ज्यादा निर्भरता सामने आ रही है। जब ऐसा हुआ तो विधायक, सांसद यहां तक कि मंत्री भी अपने कार्यकर्ताओं, समर्थकों के जायज काम तक नहीं करा पाएं। ऐसी स्थिति में पार्टी का कैडर कार्यकर्ता तो नाराज हुआ ही, स्थानीय मतदाता भी दूर हो गए जो राजनीति के इन नुमाइंदों के जरिए अपने छोटे-मोटे काम कराने के लिए इनकी गणेश परिक्रमा लगाते-लगाते थक गए थे। नौकरशाही पर अधिक भरोसा भाजपा की अधिकांश सरकारों की एक पुरानी समस्या रही है। इस समस्या की चपेट में केंद्रीय सत्ता भी है।

यही कारण है कि भाजपा सत्ता में रहने पर अपना कोई ऐसा वर्ग नहीं खड़ा कर पाती जिसका साथ उसे लंबे समय तक मिलता रहे। नौकरशाही के चश्मे से चलने वाली सरकारों को पार्टी के खिलाफ नाराजगी की जमीनी हकीकत का भी पता नहीं चलता। जिससे निचले स्तर पर कायम नाराजगी लंबे समय तक नुकसान पहुँचाती रहती है। वाराणसी समेत पूर्वांचल में अबकी न तो विकास का असर दिखा और न ही मोदी-योगी का जादू। भाजपा इस रीजन में मात्र तीन सीटें ही जीत पाई वो भी काफी कम मार्जिन से। ऐसा क्यों हुआ ये सब जानते हैं।

चुनाव से पहले भी जनता के आक्रोश को समझा जा सकता था, लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं को ये सब दिखा ही नहीं। प्रत्यशियों के खिलाफ नाराजगी तो आम बात थी। कार्यकर्ता से लेकर आम जनता तक इनसे नाराज थी। कारण था उनकी जायज पैरवी विधायक व सांसद समेत मंत्री तक करने में असमर्थ थे। नौकरशाही किसी की सुन ही नहीं रही, कई ऐसे जनप्रतिनिधि भी हैं जिनके फोन तक जिले के बड़े अधिकारी नहीं उठाते। चर्चा तो यहाँ तक है एक बड़े अधिकारी पीएमओ के खास होने के कारण बड़े बड़ों को कुछ नहीं समझते। इसकी भी नाराजगी स्थानीय जनप्रतिनिधियों में है।

जिले में एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसका काम थाना, पुलिस, तहसील व अन्य विभागों में बराबर पड़ता रहता है, लेकिन इनकी पैरवी जनप्रतिनिधि करने में असमर्थ हैं जिसके कारण उन्हें अब मोटी रकम देकर अपना काम करवाने को विवश होना पड़ रहा है। ऐसे लोग ये भी कहते सुने गए कि अपनी ही सरकार में पैसे देकर काम करवाना है तो क्या फायदा। ये नाराजगी भी चुनावी नुकसान में बहुत बड़ा फैक्टर रही। कहा तो यहां तक जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के सरकारी विभागों में किसी काम को करने की कोई निश्चित अवधि आज तक तय नहीं है जिसके कारण मनमानी हो रही है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। जनता की इन्ही छोटी छोटी नाराजगी ने यूपी में भाजपा को सपा से भी पीछे कर दिया। मोदी की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ भी एक तबके ने अपने निजी स्वार्थ में भुला दिया। सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास को हकीकत में उतारकर ही भाजपा इस नाराजगी से छुटकारा पा सकती है। इसके लिए बड़े नेताओं को अहंकार का त्याग, जनता का विश्वास, सरकार को जनता से अपनत्व का भाव जगाना ही होगा।

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