बीएचयू के डॉक्टरों ने मायस्थेनिया ग्रेविस की दुर्लभ सर्जरी में रचा इतिहास

वाराणसी (काशीवार्ता) – बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सर सुंदरलाल चिकित्सालय के शताब्दी सुपर स्पेश्यलिटी ब्लॉक में 22 नवंबर, 2024 को मायस्थेनिया ग्रेविस (एम.जी.) नामक दुर्लभ ऑटोइम्यून रोग की जटिल सर्जरी सफलतापूर्वक की गई। इस रोग के कारण मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं, जिससे पलकें झुकना, धुंधली दृष्टि, चलने में कठिनाई और सांस लेने में समस्या जैसी गंभीर स्थितियां पैदा हो सकती हैं। यह पूर्वांचल और उत्तर प्रदेश में अपनी तरह की पहली सर्जरी थी।

मायस्थेनिया ग्रेविस: एक गंभीर रोग
एम.जी. में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली न्यूरो-मस्कुलर जंक्शन पर एंटीबॉडी विकसित करती है, जिससे मांसपेशियों का सही ढंग से काम करना बाधित होता है। यह स्थिति कई बार जीवन के लिए भी खतरनाक हो सकती है। सामान्यतः इस बीमारी का इलाज दवाओं और प्लास्मफेरेसिस के माध्यम से किया जाता है। जब ये उपचार असफल हो जाएं, तो थाइमेक्टॉमी नामक सर्जरी की जाती है। इसमें थाइमस ग्रंथि को हटा दिया जाता है, जो एंटीबॉडी उत्पादन का मुख्य स्रोत है।

VATS तकनीक से हुआ सफल ऑपरेशन
बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग ने VATS (वीडियो असिस्टेड थोरेसिक सर्जरी) तकनीक के माध्यम से यह सर्जरी की। यह छाती की “मिनिमल इनवेसिव सर्जरी” है, जिसमें छोटे चीरे लगाकर थाइमस ग्रंथि को हटाया जाता है। यह तकनीक रोगी को लंबे सर्जिकल घावों और दर्द से बचाती है, तेजी से रिकवरी सुनिश्चित करती है, और अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि को कम करती है।

टीम वर्क का उत्कृष्ट उदाहरण
इस सर्जरी में विभिन्न विभागों की टीमों ने मिलकर काम किया। सर्जरी को सफल बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वालों में डॉ. तरुण कुमार (थोरैसिक कैंसर सर्जन), डॉ. निमिषा वर्मा और डॉ. शायक रॉय (एनेस्थेसियोलॉजिस्ट), श्री विनय जैन (स्क्रब नर्स), स्टाफ नर्स प्रतिमा (ओ.टी. प्रभारी), श्री बी.बी. गिरी और श्री हर्ष सिंह (ओ.टी. तकनीशियन) शामिल थे। मरीज का सर्जरी से पहले और बाद का इलाज डॉ. अभिषेक पाठक (न्यूरोफिजिशियन) की देखरेख में हुआ।

यह उपलब्धि बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल की सुपरस्पेशलिटी सेवाओं और अंतर-विभागीय समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह न केवल पूर्वांचल क्षेत्र बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश के लिए चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि है।

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