महाकुम्भ में पहली बार मनाया गया भोगाली बिहू पर्व

असमिया संस्कृति का अनूठा प्रदर्शन

14 जनवरी, महाकुम्भ नगर। इस बार प्रयागराज के महाकुम्भ में पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिली। पहली बार महाकुम्भ मेला परिसर में असम का प्रसिद्ध पर्व भोगाली बिहू धूमधाम से मनाया गया। यह आयोजन मकर संक्रांति के अवसर पर पूर्वोत्तर के संतों के शिविर प्राग ज्योतिषपुर में मंगलवार तड़के सुबह विशेष तरीके से किया गया। इस कार्यक्रम में परंपरागत विधियों के साथ असमिया संस्कृति का जीवंत प्रदर्शन हुआ।

भोगाली बिहू पर्व के दौरान महिलाओं ने बिहू नृत्य प्रस्तुत किया, जिससे मेला परिसर में सांस्कृतिक रंग बिखर गए। सुबह के समय श्रद्धालुओं को चावल से बने पारंपरिक व्यंजन वितरित किए गए। इसके अलावा, नामघर में नाम कीर्तन का आयोजन भी किया गया, जिससे धार्मिक माहौल और अधिक पवित्र हो गया।

इससे एक दिन पहले, रात में धान के पुआल से बने भेलाघर और बांस की सहायता से बनाए गए मेजी तैयार किए गए थे। मंगलवार सुबह परंपरा के अनुसार इन्हें जला दिया गया। इस दौरान पूर्वोत्तर के संत, साधक और बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण रहा।

योगाश्रम बिहलांगिनी असम के महामंडलेश्वर स्वामी केशव दास जी महाराज ने बताया कि मकर संक्रांति के अवसर पर महाकुम्भ में भोगाली बिहू पर्व का पहली बार आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन का उद्देश्य असमिया संस्कृति और पूर्वोत्तर के राज्यों की परंपराओं को महाकुम्भ के व्यापक सामाजिक और सांस्कृतिक दायरे में शामिल करना है।

यह अनूठा आयोजन महाकुम्भ की समग्रता और सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करता है। पहली बार पूर्वोत्तर की संस्कृति को महाकुम्भ के मंच पर स्थान देकर यह आयोजन असमिया परंपराओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम साबित हुआ।

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