वाराणसी (काशीवार्ता)– काशी के प्रसिद्ध लोलार्क कुंड में संतान प्राप्ति की मान्यता से जुड़ा लोलार्क षष्ठी स्नान 9 सितंबर की रात से शुरू होगा। 10 राज्यों से करीब 1 लाख श्रद्धालु इस पवित्र कुंड में स्नान करने के लिए वाराणसी पहुंचेंगे। मान्यता है कि इस दिन लोलार्केश्वर महादेव की कृपा से संतान प्राप्ति की इच्छा पूरी होती है।
वैज्ञानिक अध्ययन और खगोलीय घटनाओं के आधार पर यह माना जाता है कि लोलार्क कुंड में सूर्य की किरणों और गंगाजल के खास संयोग से संतान प्राप्ति में मदद मिलती है। बीएचयू के प्रोफेसर प्रवीण राणा के अनुसार, इस कुंड पर 40 साल से अध्ययन जारी है। उनका दावा है कि कुंड में स्नान करने वाले 60% दंपतियों की गोद भरती है। कुंड की संरचना, सूर्य की किरणों का विशेष दिशा में पड़ना और जल एक अनोखा खगोलीय संयोग बनाते हैं, जिससे स्नान करने वालों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
लोलार्क कुंड का इतिहास गुप्तकाल से जुड़ा हुआ है। इसे चौथी शताब्दी में बनाया गया था, जबकि 10वीं शताब्दी में राजा गोविंद चंद ने इसका पुनर्निर्माण कराया। आधुनिक काल में इसे इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा सजाया गया था।
पूर्व जियो-साइंटिस्ट पीवी सिंह के अनुसार, प्राचीन काल में लोलार्क कुंड का जल विभिन्न रोगों से भी मुक्ति दिलाने में सहायक था। उन्होंने बताया कि 1822 में जेम्स प्रिंसेप ने भी इस कुंड की महिमा का वर्णन किया था। सिंह के अनुसार, सूर्य की किरणें इस कुंड में एक विशेष खगोलीय प्रभाव डालती हैं, जो गर्भाधान में सहायक होती हैं।
श्रद्धालुओं की भारी संख्या को देखते हुए प्रशासन ने 5 किलोमीटर लंबी वेरीकेटिंग का प्रबंध किया है, ताकि स्नान व्यवस्था सुचारू रूप से हो सके।