
वाराणसी, धर्म और अध्यात्म की नगरी, एक अद्वितीय खगोलीय घटना की साक्षी बनी। 2025 का पहला चंद्रग्रहण काशी की पावन धरा से देखा गया। इस अद्भुत नजारे ने जहां विज्ञान और खगोल प्रेमियों को आकर्षित किया, वहीं श्रद्धालुओं के लिए यह गहन आस्था और साधना का अवसर बन गया।
ग्रहण के समय वाराणसी के घाटों और मंदिरों पर अलग ही माहौल देखने को मिला। खगोल विज्ञान में रुचि रखने वाले लोग कैमरों और दूरबीनों के साथ आसमान में घटित हो रहे इस दुर्लभ दृश्य को कैद करने में जुटे रहे। दूसरी ओर श्रद्धालु मंदिरों में भजन, कीर्तन और मंत्रोच्चार में लीन दिखाई दिए। मान्यता है कि ग्रहण के समय मंत्र-जाप, ध्यान और प्रार्थना का विशेष महत्व होता है, जिससे मन और आत्मा की शुद्धि होती है।
काशी के दशाश्वमेध, अस्सी और पंचगंगा घाट सहित कई मंदिरों से चंद्रग्रहण का मनमोहक दृश्य साफ दिखाई दिया। लोग परिवार समेत घाटों पर पहुंचे और आसमान में धीरे-धीरे बदलते चांद के स्वरूप को निहारते रहे। वातावरण में अध्यात्म और विज्ञान का अद्भुत संगम स्पष्ट झलक रहा था।
यह दृश्य न केवल खगोल विज्ञान के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा, बल्कि श्रद्धालुओं के लिए यह आत्मिक शांति और आस्था से जुड़ा अविस्मरणीय अनुभव बन गया।