कुर्मी वोटों को भी सहेज नहीं सकीं अनुप्रिया, Mirzapur में तीसरी बार कड़े संघर्ष में किसी तरह बचाई सीट, राबर्ट्सगंज गंवाया, रोहनिया और सेवापुरी में हुआ भारी नुकसान

Rajesh Rai

वाराणसी (काशीवार्ता)। अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष व केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने पार्टी संगठन को भंग कर दिया है। इसमें राष्ट्रीय से लेकर जिला इकाई और कार्यकारिणी शामिल है। इस फैसले को लोकसभा 2024 के चुनाव परिणामों से जोड़कर देखा जा रहा है।

लोकसभा चुनाव में यूपी में जाति आधारित क्षेत्रीय दलों की दुर्गति हो गई। ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी का खाता तक नहीं खुला। वहीं, अनुप्रिया पटेल बमुश्किल अपनी सीट बचा पायीं। अनुप्रिया को 2019 के लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज (सोनभद्र) दो सीटें मिली थीं। इस बार सोनभद्र सीट हाथ से निकल गई।

वहां सपा के छोटेलाल खरवार ने अपना दल की रिंकी कोल को हराया। रोहनिया व सेवापुरी में भी कुर्मी मतों का नुकसान हुआ। भाजपा की ओर अपना दल का वोट ट्रांसफर नहीं हो सका। कई कुर्मी बहुल बूथों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अजय राय से कम वोट मिले। अनुप्रिया ने मिर्जापुर से 2014 में 219079 मतों से और 2019 में 232008 मतों से जीत दर्ज की थी, लेकिन 2024 में इन्होंने कड़े संघर्ष में मात्र 37810 मतों से किसी तरह जीत दर्ज कर अपनी सीट बचा पायीं।

देखा जाय तो यह चुनाव परिणाम अप्रत्याशित नहीं है। बिना किसी राजनीतिक विचारधारा के सिर्फ जातीय आधार पर बनी पार्टियों के साथ देर सबेर ऐसा होना ही है। जहां तक अनुप्रिया की पार्टी का सवाल है यह एक तरह से पूरी पार्टी या प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह काम कर रही है। खुद अनुप्रिया केंद्र में मंत्री और पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो उत्तर प्रदेश में उनके पति आशीष पटेल मंत्री और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। इन दोनों के अलावा पार्टी के किसी पदाधिकारी के बारे में कभी कुछ नहीं सुना गया।

इस चुनाव में सपा ने अपना दल को गहरी चोट पहुंचायी। उसने टिकट बंटवारे में जातीय समीकरण को बड़ी होशियारी से साधा। सिर्फ पांच यादव और चार मुस्लिम को टिकट दिया। शेष टिकट ओबीसी में गैर यादव, अगड़ी व अनुसूचित जाति व जनजातियों में बांटा। जौनपुर से कद्दावर नेता बाबू सिंह कुशवाह को टिकट दिया। जो कभी मायावती के खासमखास हुआ करते थे।

इससे यह संदेश गया कि पिछड़ों की हितैषी सिर्फ अनुप्रिया ही नहीं हैं,बल्कि अखिलेश भी हैं। इस समीकरण का प्रभाव जौनपुर के अलावा आसपास की कुर्मी बाहुल्य सीटों पर पड़ा। अब चुनाव बाद हार का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने की कवायद चल रही है। अनुप्रिया ने पूर्व सांसद पकौड़ी लाल को नोटिस जारी किया है। आरोप है कि पकौड़ी ने अपनी बहू रिंकी कोल के खिलाफ रॉबर्ट्सगंज में चुनाव प्रचार किया। अगर यह आरोप सही है तो एक बात साबित होती है कि अनुप्रिया की पार्टी पर पकड़ कमजोर हो चुकी है।

दूसरे यह कि अनुप्रिया से पार्टी में किसी को कोई भय नहीं है। देखा जाय तो जिस मेहनत से सोनेलाल पटेल ने अपना दल पार्टी को पूर्वांचल में खड़ा किया था उसकी आधी मेहनत भी उनकी संतानों ने नहीं की। आपस में ही लड़ते झगड़ते रहे। मां कृष्णा पटेल बेटी पल्लवी पटेल के साथ मिलकर अनुप्रिया के खिलाफ मोर्चा खोले बैठी हैं। कृष्णा पटेल अपने को सोनेलाल की असली वारिस बताती हैं तो अनुप्रिया अपने को।

पारिवारिक कलह और विपक्ष की चुनावी रणनीति की वजह से अनुप्रिया की पार्टी हाशिये पर चली गई है। जाहिर है कि इसका असर आने वाले चुनावों पर पड़ेगा। यूपी विधानसभा का चुनाव 2027 में है। अगर वह चुनाव अपना दल एनडीए के बैनर तले लड़ती हैं तो टिकट बंटवारे में अनुप्रिया की स्थिति वह नहीं रहेगी जो अबतक थी।

राजनीति बड़ी निर्मम और कठोर यथार्थ के धरातल पर खड़ी होती है। इसमें आपसी रिश्तों का कोई मोल नहीं होता। यहां सिर्फ जीत की संभावना तलाशी जाती है। उसी का महत्व होता है। ताज्जुब नहीं होना चाहिए अगर आनेवाले वक्त में अपना दल के एनडीए से रिश्ते में दरार देखने को मिले।

TOP

You cannot copy content of this page